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म॒क्षू हि ष्मा॒ गच्छ॑थ॒ ईव॑तो॒ द्यूनिन्द्रो॒ न श॒क्तिं परि॑तक्म्यायाम्। दि॒व आजा॑ता दि॒व्या सु॑प॒र्णा कया॒ शची॑नां भवथः॒ शचि॑ष्ठा ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

makṣū hi ṣmā gacchatha īvato dyūn indro na śaktim paritakmyāyām | diva ājātā divyā suparṇā kayā śacīnām bhavathaḥ śaciṣṭhā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒क्षु। हि। स्म॒। गच्छ॑थः। ईव॑तः। द्यून्। इन्द्रः॑। न। श॒क्तिम्। परि॑ऽतक्म्यायाम्। दि॒वः। आऽजा॑ता। दि॒व्या। सु॒ऽप॒र्णा। कया॑। शची॑नाम्। भ॒व॒थः॒। शचि॑ष्ठा ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:43» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापकोपदेशको (दिव्या) शुद्ध व्यवहार में उत्पन्न (सुपर्णा) उत्तम पालनों से युक्त (दिवः) विद्या के प्रकाश से (आजाता) सब प्रकार उत्पन्न हुए (शचिष्ठा) अत्यन्त बुद्धिमानो ! आप (इन्द्रः) बिजुली (ईवतः) बहुत गतिवाले (द्यून्) प्रकाशों को जैसे (न) वैसे (परितक्म्यायाम्) सब प्रकार हंसनेवालों से युक्त सृष्टि में (शक्तिम्) सामर्थ्य को (गच्छथः) प्राप्त होते हैं (हि) ही हो और (कया, स्मा) किसी से (शचीनाम्) बुद्धियों वा वाणियों के अत्यन्त जाननेवाले (मक्षु) शीघ्र (भवथः) होते हो ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो बिजुली के सदृश सामर्थ्य को बढ़ाते हैं, वे बुद्धिमान् होकर अतुल लक्ष्मी को संसार में प्राप्त होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ दिव्या सुपर्णा दिव आजाता शचिष्ठा ! भवन्ताविन्द्र ईवतो द्यून्न परितक्म्यायां शक्तिं गच्छथो हि कया स्मा शचीनां शचिष्ठा मक्षु भवथः ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मक्षु) सद्यः (हि) (स्मा) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (गच्छथः) (ईवतः) बहुगतिमतः (द्यून्) प्रकाशान् (इन्द्रः) विद्युत् (न) इव (शक्तिम्) सामर्थ्यम् (परितक्म्यायाम्) परितः सर्वतस्तकन्ति हसन्ति यस्यां सृष्टौ तस्याम् (दिवः) विद्याप्रकाशात् (आजाता) समन्ताज्जातौ (दिव्या) दिवि शुद्धे व्यवहारे भवौ (सुपर्णा) सुष्ठु पर्णानि पालनानि ययोस्तौ (कया) (शचीनाम्) प्रज्ञानां वाचां वा (भवथः) (शचिष्ठा) अतिशयेन प्राज्ञौ ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये विद्युद्वत्सामर्थ्यं वर्द्धयन्ति ते धीमन्तो भूत्वाऽतुलां श्रियं जगति लभन्ते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे विद्युतप्रमाणे सामर्थ्य वाढवितात ते बुद्धिमान बनून या जगात अतुल लक्ष्मी प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥