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क उ॑ श्रवत्कत॒मो य॒ज्ञिया॑नां व॒न्दारु॑ दे॒वः क॑त॒मो जु॑षाते। कस्ये॒मां दे॒वीम॒मृते॑षु॒ प्रेष्ठां॑ हृ॒दि श्रे॑षाम सुष्टु॒तिं सु॑ह॒व्याम् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ka u śravat katamo yajñiyānāṁ vandāru devaḥ katamo juṣāte | kasyemāṁ devīm amṛteṣu preṣṭhāṁ hṛdi śreṣāma suṣṭutiṁ suhavyām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कः। ऊ॒म् इति॑। श्र॒व॒त्। क॒त॒मः॒। य॒ज्ञिया॑नाम्। व॒न्दारु॑। दे॒वः। क॒त॒मः। जु॒षा॒ते॒। कस्य॑। इ॒माम्। दे॒वीम्। अ॒मृते॑षु। प्रेष्ठा॑म्। हृ॒दि। श्रे॒षा॒म॒। सु॒ऽस्तु॒तिम्। सु॒ऽह॒व्याम् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:43» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:19» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सात ऋचावाले तेंतालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अध्यापकोपदेशकविषय में प्रश्नोत्तर विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (कः) कौन (उ) और (कतमः) कौनसा (देवः) विद्वान् (यज्ञियानाम्) यज्ञ की सिद्धि करनेवालों की (वन्दारु) वन्दना करनेवाले स्वभाव को (श्रवत्) सुनता है और (कतमः) कौनसा (जुषाते) सेवन करता है (कस्य) किस के (हृदि) हृदय के निमित्त (इमाम्) इस (प्रेष्ठाम्) अत्यन्त प्रिय (सुष्टुतिम्) उत्तम प्रशंसा युक्त (सुहव्याम्) उत्तम प्रकार ग्रहण करने योग्य और (अमृतेषु) मरणरहितों में (देवीम्) प्रकाशमान और विद्यायुक्त स्त्री की (श्रेषाम) सेवा करें ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! कौन इस संसार में यज्ञ, कौन यज्ञ के करनेवाले, कौन विद्वान्, कौन विद्यायुक्त स्त्री तथा कौन अमृत और कौन सेवने और सुनने योग्य है, यह पूछा है, उत्तर आगे हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकोपदेशकविषये प्रश्नोत्तरविषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! क उ कतमो देवो यज्ञियानां वन्दारु श्रवत्कतमश्च जुषाते। कस्य हृदीमां प्रेष्ठां सुष्टुतिं सुहव्याममृतेषु देवीं श्रेषाम ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कः) (उ) (श्रवत्) शृणोति (कतमः) (यज्ञियानाम्) यज्ञसिद्धिकर्त्तॄणाम् (वन्दारु) वन्दनशीलम् (देवः) विद्वान् (कतमः) (जुषाते) सेवते (कस्य) (इमाम्) (देवीम्) देदीप्यमानां विदुषीम् (अमृतेषु) मरणरहितेषु (प्रेष्ठाम्) अतिशयेन प्रियाम् (हृदि) (श्रेषाम) सेवेम (सुष्टुतिम्) शोभना प्रशंसा यस्यास्ताम् (सुहव्याम्) सुष्ठु गृहीतव्याम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! कोऽत्र यज्ञः के यज्ञसम्पादकाः को देवः का देवी किममृतं सेवनीयं श्रवणीयञ्चेति पृच्छ्यते, उत्तरमग्रे ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अध्यापक व उपदेशक, शिकणाऱ्या व उपदेश ऐकणाऱ्याचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! या जगात कोणता यज्ञ, कोण यज्ञ करणारे, कोण विद्वान, कोण विदुषी व कोण अमृत तसेच कोण ग्रहण करण्यायोग्य व ऐकण्यायोग्य आहेत हे विचारलेले आहे. उत्तर पुढे आहे. ॥ १ ॥