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अ॒हम॒पो अ॑पिन्वमु॒क्षमा॑णा धा॒रयं॒ दिवं॒ सद॑न ऋ॒तस्य॑। ऋ॒तेन॑ पु॒त्रो अदि॑तेर्ऋ॒तावो॒त त्रि॒धातु॑ प्रथय॒द्वि भूम॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aham apo apinvam ukṣamāṇā dhārayaṁ divaṁ sadana ṛtasya | ṛtena putro aditer ṛtāvota tridhātu prathayad vi bhūma ||

पद पाठ

अ॒हम्। अ॒पः। अ॒पि॒न्व॒म्। उ॒क्षमा॑णाः। धा॒रय॑म्। दिव॑म्। सद॑ने। ऋ॒तस्य॑। ऋ॒तेन॑। पु॒त्रः। अदि॑तेः। ऋ॒तऽवा॑। उ॒त। त्रि॒ऽधातु॑। प्र॒थ॒य॒त्। वि। भूम॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:42» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:17» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (अहम्) मैं परमात्मा ही (ऋतस्य) सत्य प्रकृति नामक के (सदने) सदन में अर्थात् सब के ठहरने के लिये जो संसार उसमें (दिवम्) बिजुली की (उक्षमाणाः) सेवा करते हुए (अपः) जलों वा अन्तरिक्ष की (अपिन्वम्) सेवा करता हूँ और (ऋतेन) सत्य कारण से (अदितेः) खण्डरहित अन्तरिक्ष का (ऋतावा) सत्य से युक्त (पुत्रः) पुत्र के सदृश वर्त्तमान (उत) निश्चय से (भूम) अनेक प्रकार के (त्रिधातु) तीन अर्थात् सत्त्वगुण रजोगुण और तमोगुण धारण करनेवाले जिसमें उस सम्पूर्ण जगत् को (वि, प्रथयत्) विविध प्रकट करे, उसको मैं (धारयम्) धारण करूँ ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! मेरे विना इस संसार का धारण करनेवाला अन्य कोई भी नहीं है और जैसा तीन अर्थात् सत्त्वादिगुणमय कारण है, वैसे ही इस कार्य्य को देखो ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! अहमेवर्त्तस्य सदने दिवमुक्षमाणा अपोऽपिन्वमृतेनादितेर्ऋतावा पुत्र उत भूम त्रिधातु वि प्रथयत् तमहं धारयम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अहम्) परमात्मा (अपः) जलान्यन्तरिक्षं वा (अपिन्वम्) सेवे (उक्षमाणाः) सेवमानाः (धारयम्) (दिवम्) विद्युतम् (सदने) सर्वस्थित्यर्थे जगति (ऋतस्य) सत्यस्य प्रकृत्याख्यस्य (ऋतेन) सत्येन कारणेन (पुत्रः) तनय इव (अदितेः) अखण्डितस्यान्तरिक्षस्य (ऋतावा) ऋतं सत्यं विद्यते यस्मिन् सः (उत) अपि (त्रिधातु) त्रयः सत्वरजस्तमांसि गुणा धारका यस्मिंस्तत् सर्वं जगत् (प्रथयत्) (वि) विविधम् (भूम) बहुविधम् ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! मदृतेनास्य जगतो धर्त्ताऽन्यः कश्चिदपि नास्ति यादृशं त्रिगुणमयं कारणमस्ति तादृशमेवेदं कार्य्यं पश्यत ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! माझ्याशिवाय (परमात्म्याशिवाय) या जगाला धारण करणारा दुसरा कोणी नाही व जसे त्रिगुण सत्वगुण युक्त कारण आहे तसेच हे कार्य समजा. ॥ ४ ॥