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सत्वा॑ भरि॒षो ग॑वि॒षो दु॑वन्य॒सच्छ्र॑व॒स्यादि॒ष उ॒षस॑स्तुरण्य॒सत्। स॒त्यो द्र॒वो द्र॑व॒रः प॑तङ्ग॒रो द॑धि॒क्रावेष॒मूर्जं॒ स्व॑र्जनत् ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

satvā bhariṣo gaviṣo duvanyasac chravasyād iṣa uṣasas turaṇyasat | satyo dravo dravaraḥ pataṁgaro dadhikrāveṣam ūrjaṁ svar janat ||

पद पाठ

सत्वा॑। भ॒रि॒षः। गो॒ऽइ॒षः। दु॒व॒न्य॒ऽसत्। श्र॒व॒स्यात्। इ॒षः। उ॒षसः॑। तु॒रण्य॒ऽसत्। स॒त्यः। द्र॒वः। द्र॒व॒रः। प॒त॒ङ्ग॒रः। द॒धि॒ऽक्रावा॑। इष॑म्। ऊर्ज॑म्। स्वः॑। ज॒न॒त् ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:40» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:14» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (सत्वा) प्राप्त करनेवाला (भरिषः) धारण और पोषण में चतुर (गविषः) गौओं की और (दुवन्यसत्) सेवा की इच्छा करता हुआ तथा (इषः) इच्छाओं और (उषसः) प्रातःकालों को (तुरण्यसत्) अपनी शीघ्रता को चाहता हुआ (श्रवस्यात्) अपने श्रवण की इच्छा करे तथा जो (सत्यः) श्रेष्ठों में श्रेष्ठ (द्रवः) स्नेही (द्रवरः) द्रव में रमने वा द्रव अर्थात् गीले पदार्थों को देने और (पतङ्गरः) अग्नि में रमने वा अग्नि को देनेवाला (दधिक्रावा) धारण करने योग्य वाहन पर जाता (इषम्) अन्न (ऊर्जम्) पराक्रम और (स्वः) सुख को (जनत्) उत्पन्न करे, वही राजा आप लोगों को सत्कार करने योग्य है ॥२॥
भावार्थभाषाः - प्रजाजनों के साथ जो राजा सत्यवादी, जितेन्द्रिय, सब के सुख की इच्छा करता हुआ, न्यायकारी पिता के सदृश वर्ताव करे, वही प्रजाओं का पालन कर सकता है ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यः सत्वा भरिषो गविषो दुवन्यसदिष उषसस्तुरण्यसच्छ्रवस्याद्यः सत्यो द्रवो द्रवरः पतङ्गरो दधिक्रावेषमूर्जं स्वश्च जनत् स एव राजा युष्माभिः सत्कर्त्तव्योऽस्ति ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्वा) प्रापकः (भरिषः) धारणपोषणचतुरः (गविषः) गा इच्छन् (दुवन्यसत्) परिचरणमिच्छन् (श्रवस्यात्) आत्मनः श्रवणमिच्छेत् (इषः) इच्छाः (उषसः) प्रभातान् (तुरण्यसत्) आत्मनस्तुरणं त्वरणमिच्छन् (सत्यः) सत्सु साधुः (द्रवः) स्निग्धः (द्रवरः) यो द्रवे रमते द्रवान् ददाति वा (पतङ्गरः) यः पतङ्गेऽग्नौ रमते पतङ्गं ददाति वा (दधिक्रावा) धर्त्तव्ययानक्रमिता (इषम्) अन्नम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (स्वः) सुखम् (जनत्) जनयेत् ॥२॥
भावार्थभाषाः - प्रजाजनैर्यो राजा सत्यवादी जितेन्द्रियः सर्वेषां सुखमिच्छुर्न्यायकारी पितृवद्वर्त्तेत स एव प्रजाः पालयितुं शक्नोति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा प्रजेशी सत्यवादी, जितेन्द्रिय, सर्वांच्या सुखाची इच्छा करणाऱ्या न्यायकारी पित्याप्रमाणे वर्तन करतो तोच प्रजेचे पालन करू शकतो. ॥ २ ॥