वांछित मन्त्र चुनें

सेद॑ग्ने अस्तु सु॒भगः॑ सु॒दानु॒र्यस्त्वा॒ नित्ये॑न ह॒विषा॒ य उ॒क्थैः। पिप्री॑षति॒ स्व आयु॑षि दुरो॒णे विश्वेद॑स्मै सु॒दिना॒ सास॑दि॒ष्टिः ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sed agne astu subhagaḥ sudānur yas tvā nityena haviṣā ya ukthaiḥ | piprīṣati sva āyuṣi duroṇe viśved asmai sudinā sāsad iṣṭiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। इत्। अ॒ग्ने॒। अ॒स्तु॒। सु॒ऽभगः॑। सु॒ऽदानुः॑। यः। त्वा॒। नित्ये॑न। ह॒विषा॑। यः। उ॒क्थैः। पिप्री॑षति। स्वे। आयु॑षि। दु॒रो॒णे। विश्वा॑। इत्। अ॒स्मै॒। सु॒ऽदिना॑। सा। अ॒स॒त्। इ॒ष्टिः॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:4» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:24» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्या से प्रकाशित सभ्यजन ! (यः) जो (सुभगः) प्रशंसनीय ऐश्वर्य्ययुक्त (सुदानुः) उत्तम दान देनेवाला हो (सः, इत्) वही आपका सभासद् (अस्तु) हो (यः) जो (उक्थैः) प्रशंसाओं और (नित्येन) नहीं नाश होनेवाले (हविषा) हवन करने योग्य पदार्थ से (त्वा) आपको (पिप्रीषति) सुशोभित करने की इच्छा करता है (अस्मै) इसके लिये (स्वे) अपने (आयुषि) जीवन और (दुरोणे) गृह में (विश्वा) सम्पूर्ण (सुदिना) सुन्दर दिन हों (सा) वह (इष्टिः) यज्ञ करने की क्रिया दोनों लोकों में सुख देनेवाली (इत्) ही (असत्) होवे ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो लोग नित्य प्रेम से न्याय और विनय के द्वारा राज्य की उन्नति करते और राजा और प्रजा के उपद्रव के विना मङ्गल समय सदा ही प्राप्त कराते हैं, वे राजगृह में अध्यक्ष हों ॥७॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यस्सुभगः सुदानुर्भवेत् स इदेव तव सभ्योऽस्तु य उक्थैर्नित्येन हविषा त्वा पिप्रीषति। अस्मै स्व आयुषि दुरोणे विश्वा सुदिना सन्तु सेष्टिरुभयत्र कल्याणकारिणीदसत् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) राजा (इत्) एव (अग्ने) विद्याप्रकाशितसभ्यजन (अस्तु) (सुभगः) प्रशस्तैश्वर्य्यः (सुदानुः) उत्तमदानः (यः) (त्वा) त्वाम् (नित्येन) अविनाशिना (हविषा) होतव्येन (यः) (उक्थैः) प्रशंसनैः (पिप्रीषति) कमितुमिच्छति (स्वे) स्वकीये (आयुषि) जीवने (दुरोणे) (विश्वा) अखिलानि (इत्) एव (अस्मै) (सुदिना) शोभनानि दिनानि (सा) (असत्) भवेत् (इष्टिः) यजनक्रिया ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! येऽविनाशिना प्रेम्णा न्यायविनयाभ्यां राज्योन्नतिं विदधति राजप्रजयोर्निरुपद्रवेण मङ्गलसमयं सदैव प्रापयन्ति ते राजगृहेऽध्यक्षाः स्युः ॥७॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! जे लोक नित्य प्रेमाने न्याय व विनय याद्वारे राज्याची उन्नती करतात व राजा आणि प्रजा यांच्यात उपद्रव न करता चांगले दिवस सदैव प्राप्त करवून देतात ते राजगृहात अध्यक्ष असावेत. ॥ ७ ॥