वांछित मन्त्र चुनें

म॒हो रु॑जामि ब॒न्धुता॒ वचो॑भि॒स्तन्मा॑ पि॒तुर्गोत॑मा॒दन्वि॑याय। त्वं नो॑ अ॒स्य वच॑सश्चिकिद्धि॒ होत॑र्यविष्ठ सुक्रतो॒ दमू॑नाः ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

maho rujāmi bandhutā vacobhis tan mā pitur gotamād anv iyāya | tvaṁ no asya vacasaś cikiddhi hotar yaviṣṭha sukrato damūnāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒हः। रु॒जा॒मि॒। ब॒न्धुता॑। वचः॑ऽभिः। तत्। मा॒। पि॒तुः। गोत॑मात्। अनु॑। इ॒या॒य॒। त्वम्। नः॒। अ॒स्य। वच॑सः। चि॒कि॒द्धि॒। होतः॑। य॒वि॒ष्ठ॒। सु॒क्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो। दमू॑नाः॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:4» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:11


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब कुमार और कुमारियों के शिक्षा विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जैसे मैं (गोतमात्) अत्यन्त सम्पूर्ण विद्याओं के स्तुति करनेवाले (पितुः) पिता से विद्या को प्राप्त होकर अविद्यादि दोष और शत्रुओं को (रुजामि) प्रभग्न करता हूँ (तत्) (महः) बड़ा कार्य और (वचोभिः) वचनों से (बन्धुता) बन्धुपन (मा) मुझे (अनु, इयाय) प्राप्त हो, वैसे यह बन्धुपन आपको प्राप्त हो और हे (होतः) देनेवाले (यविष्ठ) अत्यन्त युवा (सुक्रतो) उत्तम बुद्धियुक्त पुरुष (दमूनाः) दमनशील जितेन्द्रिय ! (त्वम्) आप (अस्य) इस (वचसः) वचन की उत्तेजना से (नः) हम लोगों को (चिकिद्धि) जनाइये ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे कुमार और कुमारियो ! जैसे हम लोग माता-पिता और आचार्य्य से उत्तम शिक्षा और विद्या को प्राप्त होकर आनन्दित होवें, वैसे आप लोग भी हूजिये ॥११॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ कुमारकुमारीणां शिक्षाविषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! यथाऽहं गोतमात् पितुर्विद्यां प्राप्य दोषाञ्छत्रूंश्च रुजामि तन्महो वचोभिर्बन्धुता मान्वियाय तथेयं त्वामियात् हे होतर्यविष्ठ सुक्रतो दमूनास्त्वमस्य वचसः सकाशान्नोऽस्माञ्चिकिद्धि ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (महः) महत् (रुजामि) प्रभग्नान् करोमि (बन्धुता) बन्धूनां भावः (वचोभिः) वचनैः (तत्) (मा) माम् (पितुः) जनकात् (गोतमात्) अतिशयेन गौः सकलविद्यास्तोता तस्मात्। गौरिति स्तोतृनामसु पठितम्। (निघं०३.१६) (अनु) (इयाय) प्राप्नोतु (त्वम्) (नः) अस्मान् (अस्य) (वचसः) (चिकिद्धि) ज्ञापय (होतः) दातः (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (सुक्रतो) सुष्ठुप्राप्तप्रज्ञ (दमूनाः) दमनशीलो जितेन्द्रियः ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे कुमारा कुमार्यश्च ! यथा वयं मातुः पितुराचार्याच्च सुशिक्षां विद्यां प्राप्याऽऽनन्दिता भवेम तथैव यूयमपि भवत ॥११॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे कुमार व कुमारींनो ! जसे आम्ही माता, पिता, आचार्याकडून उत्तम शिक्षण व विद्या प्राप्त करून आनंदित होतो तसे तुम्हीही व्हा. ॥ ११ ॥