वांछित मन्त्र चुनें

कृ॒णु॒ष्व पाजः॒ प्रसि॑तिं॒ न पृ॒थ्वीं या॒हि राजे॒वाम॑वाँ॒ इभे॑न। तृ॒ष्वीमनु॒ प्रसि॑तिं द्रूणा॒नोऽस्ता॑सि॒ विध्य॑ र॒क्षस॒स्तपि॑ष्ठैः ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kṛṇuṣva pājaḥ prasitiṁ na pṛthvīṁ yāhi rājevāmavām̐ ibhena | tṛṣvīm anu prasitiṁ drūṇāno stāsi vidhya rakṣasas tapiṣṭhaiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कृ॒णु॒ष्व॒। पाजः॑। प्रऽसि॑तिम्। न। पृ॒थ्वीम्। या॒हि। राजा॑ऽइव। अमऽवान्। इभे॑न। तृ॒ष्वीम्। अनु॑। प्रऽसि॑तिम्। द्रू॒णा॒नः। अस्ता॑। अ॒सि॒। विध्य॑। र॒क्षसः॑। तपि॑ष्ठैः॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:4» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पन्द्रह ऋचावाले चौथे सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राजविषय में सेनापति के काम को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सेना के ईश ! आप (राजेव) राजा के सदृश (अमवान्) बलवान् (इभेन) हाथी से (याहि) जाइये प्राप्त हूजिये (प्रसितिम्) दृढ़ बँधी हुई (पृथ्वीम्) भूमि के (न) सदृश (पाजः) बल (कृणुष्व) करिये जिससे (प्रसितिम्) बन्धन और (तृष्वीम्) पियासी के प्रति (अनु, द्रूणानः) अनुकूल शीघ्रता करनेवाले और (अस्ता) फेंकनेवाला (असि) हो इससे (तपिष्ठैः) अतिशय सन्ताप देनेवाले शस्त्र आदिकों से (रक्षसः) दुष्टों को (विध्य) पीड़ा देओ ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे राजसम्बन्धी जनो ! आप लोग पृथिवी के सदृश दृढ़ बल करके, राजा के सदृश न्यायाधीश होकर, पिपासित मृगी के पीछे दौड़ते हुए भेड़िये के सदृश दुष्ट डाकू जो कि अनुधावन करते अर्थात् जो कि पथिकादिकों के पीछे दौड़ते हुए, उनका नाश करो ॥१॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषये सेनापतिकृत्यमाह ॥

अन्वय:

हे सेनेश ! त्वं राजेवाऽमवानिभेन याहि प्रसितिं पृथ्वीं न पाजः कुणुष्व यतः प्रसितिं तृष्वीमनु द्रूणानोऽस्तासि तस्मात्तपिष्ठै रक्षसो विध्य ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कृणुष्व) (पाजः) बलम् (प्रसितिम्) प्रबद्धाम् (न) इव (पृथ्वीम्) भूमिम् (याहि) (राजेव) (अमवान्) बलवान् (इभेन) हस्तिना (तृष्वीम्) पिपासिताम् (अनु) (प्रसितिम्) बन्धनम् (द्रूणानः) शीघ्रकारी (अस्ता) प्रक्षेप्ता (असि) (विध्य) (रक्षसः) दुष्टान् (तपिष्ठैः) अतिशयेन सन्तापकैः शस्त्रादिभिः ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे राजजना ! यूयं पृथ्वीव दृढं बलं कृत्वा राजवन्न्यायाधीशा भूत्वा तृषिताम्मृगीमनुधावन् वृक इव दुष्टान् दस्यूननुधावन्तस्तान् घ्नत ॥१॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राजा व प्रजा यांच्या कृत्याचे वर्णन केल्याने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या यंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजजनानो (सेनापती इत्यादींनो) तुम्ही पृथ्वीप्रमाणे दृढ बलयुक्त व्हा. राजाप्रमाणे न्यायाधीश बना व तृषित हरिणीमागे धावणाऱ्या लांडग्याप्रमाणे असणाऱ्या व वाटसरूंना लुटणाऱ्या दुष्ट दस्यूंचा नाश करा. ॥ १ ॥