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आ॒शुं द॑धि॒क्रां तमु॒ नु ष्ट॑वाम दि॒वस्पृ॑थि॒व्या उ॒त च॑र्किराम। उ॒च्छन्ती॒र्मामु॒षसः॑ सूदय॒न्त्वति॒ विश्वा॑नि दुरि॒तानि॑ पर्षन् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

āśuṁ dadhikrāṁ tam u nu ṣṭavāma divas pṛthivyā uta carkirāma | ucchantīr mām uṣasaḥ sūdayantv ati viśvāni duritāni parṣan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒शुम्। द॒धि॒ऽक्राम्। तम्। ऊ॒म् इति॑। नु। स्त॒वा॒म॒। दि॒वः। पृ॒थि॒व्याः। उ॒त। च॒र्कि॒रा॒म॒। उ॒च्छन्तीः॑। माम्। उ॒षसः॑। सू॒द॒य॒न्तु॒। अति॑। विश्वा॑नि। दुः॒ऽइ॒तानि॑। प॒र्ष॒न् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:39» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:13» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब छः ऋचावाले उनतालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में कैसा राजा हो, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग (दिवः) प्रकाश और (पृथिव्याः) भूमि के मध्य में (तम्) उस (आशुम्) शीघ्र चलनेवाले (दधिक्राम्) धारण करने योग्य को धारण करनेवाले की (नु) तर्क वितर्क के साथ (स्तवाम) प्रशंसा करें (उत) और शत्रुओं को (उ) भी (चर्किराम) निरन्तर फैकें और जो (माम्) मुझको (पर्षन्) सीचें उनकी (उच्छन्तीः) सेवा करती हुई (उषसः) प्रभात वेला (विश्वानि) सम्पूर्ण (दुरितानि) दुःखों वा दुष्टाचरणों को (अति, सूदयन्तु) अत्यन्त दूर करें ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो राजा हम लोगों के दुःखों को दूर करके जैसे प्रातःकाल अन्धकार को वैसे अन्याय और दुष्टों का निषेध करता है, उसी की हम लोग प्रशंसा करें ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

वयं दिवस्पृथिव्यास्तमाशुं दधिक्रां नु ष्टवामोत शत्रूनु चर्किराम या मां पर्षंस्ता उच्छन्तीरुषसो विश्वानि दुरितान्यति सूदयन्तु ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आशुम्) सद्योगामिनम् (दधिक्राम्) धर्त्तव्यधरम् (तम्) (उ) (नु) (स्तवाम) प्रशंसेम (दिवः) प्रकाशस्य (पृथिव्याः) भूमेर्मध्ये (उत) (चर्किराम) भृशं विक्षेपयाम (उच्छन्तीः) सेवयन्तीः (माम्) (उषसः) प्रभातवेलाः (सूदयन्तु) क्षरयन्तु दूरीकुर्वन्तु (अति) (विश्वानि) समग्राणि (दुरितानि) दुःखानि दुष्टाचरणानि वा (पर्षन्) सिञ्चन्तु ॥१॥
भावार्थभाषाः - यो राजास्मद् दुःखानि दूरं नीत्वोषा अन्धकारमिवाऽन्यायं दुष्टान्निषेधति तस्यैव वयं प्रशंसां कुर्य्याम ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राजा व प्रजेच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - प्रातःकाळ जसा अंधकार दूर करतो तसा जो राजा आमचे दुःख दूर करून अन्याय व दुष्टांचा निषेध करतो त्याचीच आम्ही प्रशंसा करावी. ॥ १ ॥