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उ॒त स्मा॑स्य पनयन्ति॒ जना॑ जू॒तिं कृ॑ष्टि॒प्रो अ॒भिभू॑तिमा॒शोः। उ॒तैन॑माहुः समि॒थे वि॒यन्तः॒ परा॑ दधि॒क्रा अ॑सरत्स॒हस्रैः॑ ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta smāsya panayanti janā jūtiṁ kṛṣṭipro abhibhūtim āśoḥ | utainam āhuḥ samithe viyantaḥ parā dadhikrā asarat sahasraiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। स्म॒। अ॒स्य॒। प॒न॒य॒न्ति॒। जनाः॑। जू॒तिम्। कृ॒ष्टि॒ऽप्रः। अ॒भिऽभू॑तिम्। आ॒शोः। उ॒त। ए॒न॒म्। आ॒हुः॒। स॒म्ऽइ॒थे। वि॒ऽयन्तः॑। परा॑। द॒धि॒ऽक्राः। अ॒स॒र॒त्। स॒हस्रैः॑ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:38» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (जनाः) राजा और प्रजाजन (अस्य) इस (कृष्टिप्रः) मनुष्य को दूतचार अर्थात् गुप्त दूत आदि से पालना करनेवाले (आशोः) सम्पूर्ण विद्याओं में व्याप्त राजा के सङ्ग्राम में (अभिभूतिम्) तिरस्कार और (जूतिम्) न्याय के वेग का (उत) तर्क-वितर्क के साथ (पनयन्ति) व्यवहार करते वा प्रशंसा करते हैं (उत) और भी (एनम्) इसको (समिथे) सङ्ग्राम में (वियन्तः) विशेष करके प्राप्त होते हुए (आहुः) कहते हैं और जो (दधिक्राः) धारण करनेवालों के साथ चलनेवाला (सहस्रैः) असङ्ख्यों के साथ (परा, असरत्) उत्कृष्ट चलता है (स्म) वही जीत सके ॥९॥
भावार्थभाषाः - उसी राजा की विद्वान् जन प्रशंसा करते हैं, जो प्रजा के पालन में तत्पर हुआ सब के व्यवहारों को सिद्ध करता है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! जना अस्य कृष्टिप्र आशोः सङ्ग्रामेऽभिभूतिं जूतिमुत पनयन्त्युतैनं समिथे वियन्त आहुर्यो दधिक्राः सहस्रैः परासरत् स स्म विजेतुं शक्नुयात् ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) वितर्के (स्म) (अस्य) राज्ञः (पनयन्ति) व्यवहरन्ति स्तुवन्ति वा (जनाः) राजप्रजामनुष्याः (जूतिम्) न्यायवेगम् (कृष्टिप्रः) यः कृष्टीन् मनुष्यान् दूतचारैः प्राति तस्य (अभिभूतिम्) अभिभवं तिरस्कारम् (आशोः) सकलविद्याव्यापकस्य (उत) अपि (एनम्) (आहुः) कथयन्ति (समिथे) सङ्ग्रामे (वियन्तः) विशेषेण प्राप्नुवन्तः (परा) (दधिक्राः) यो धारकैः सह क्रामति (असरत्) सरति गच्छति (सहस्रैः) असङ्ख्यैः ॥९॥
भावार्थभाषाः - तमेव राजानं विद्वांसः प्रशंसन्ति यः प्रजापालनतत्परः सन् सर्वान् व्यावहारयति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो प्रजेच्या पालनात तत्पर असतो व सर्वांच्या व्यवहारांना सिद्ध करतो, त्याच राजाची विद्वान लोक प्रशंसा करतात. ॥ ९ ॥