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वि नो॑ वाजा ऋभुक्षणः प॒थश्चि॑तन॒ यष्ट॑वे। अ॒स्मभ्यं॑ सूरयः स्तु॒ता विश्वा॒ आशा॑स्तरी॒षणि॑ ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vi no vājā ṛbhukṣaṇaḥ pathaś citana yaṣṭave | asmabhyaṁ sūrayaḥ stutā viśvā āśās tarīṣaṇi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि। नः॒। वा॒जाः॒। ऋ॒भु॒क्ष॒णः॒। प॒थः। चि॒त॒न॒। यष्ट॑वे। अ॒स्मभ्य॑म्। सू॒र॒यः॒। स्तु॒ताः। विश्वाः॑। आशाः॑। त॒री॒षणि॑ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:37» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:10» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजाः) प्रशंसित (ऋभुक्षणः) बड़े (स्तुताः) स्तुति किये गये (सूरयः) विद्वानो ! आप लोग (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (यष्टवे) मिलने को (पथः) मार्ग (वि, चितन) जनाइये जिससे (तरीषणि) दुःख के पार उतरने के सामर्थ्य को प्राप्त होकर (नः) हम लोगों की (विश्वाः) सम्पूर्ण (आशाः) इच्छाएँ पूर्ण होवें ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य बाल्यावस्था से लेकर विद्वानों की शिक्षा का ग्रहण करें, उनकी सम्पूर्ण इच्छा पूर्ण होवें ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वाजा ऋभुक्षणः स्तुताः सूरयो ! यूयमस्मभ्यं यष्टवे पथो विचितन यतो तरीषणि प्राप्य नोऽस्माकं विश्वा आशाः पूर्णाः स्युः ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वि) (नः) अस्माकम् (वाजाः) (ऋभुक्षणः) महान्तः (पथः) मार्गान् (चितन) ज्ञापयत (यष्टवे) सङ्गन्तुम् (अस्मभ्यम्) (सूरयः) विद्वांसः (स्तुताः) (विश्वाः) अखिलाः (आशाः) इच्छाः (तरीषणि) दुःखं तरितुं सामर्थ्यम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या बाल्यावस्थामारभ्य विद्वच्छिक्षां गृह्णीयुस्तेषां सकला इच्छाः पूर्णाः स्युः ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे बाल्यावस्थेपासून विद्वानांकडून शिक्षण घेतात त्यांच्या संपूर्ण इच्छा पूर्ण होतात. ॥ ७ ॥