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देवता: ऋभवः ऋषि: वामदेवो गौतमः छन्द: जगती स्वर: निषादः

श्रेष्ठं॑ वः॒ पेशो॒ अधि॑ धायि दर्श॒तं स्तोमो॑ वाजा ऋभव॒स्तं जु॑जुष्टन। धीरा॑सो॒ हि ष्ठा क॒वयो॑ विप॒श्चित॒स्तान्व॑ ए॒ना ब्रह्म॒णा वे॑दयामसि ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śreṣṭhaṁ vaḥ peśo adhi dhāyi darśataṁ stomo vājā ṛbhavas taṁ jujuṣṭana | dhīrāso hi ṣṭhā kavayo vipaścitas tān va enā brahmaṇā vedayāmasi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श्रेष्ठ॑म्। वः॒। पेशः॑। अधि॑। धा॒यि॒। द॒र्श॒तम्। स्तोमः॑। वा॒जाः॒। ऋ॒भ॒वः॒। तम्। जु॒जु॒ष्ट॒न॒। धीरा॑सः। हि। स्थ। क॒वयः॑। वि॒पः॒ऽचितः॑। तान्। वः। ए॒ना। ब्रह्म॑णा। आ। वे॒द॒या॒म॒सि॒ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:36» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:8» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजाः) उत्तम स्वभावयुक्त और वेगवाले (ऋभवः) बुद्धिमान् ! आप लोग जिसके (वः) आप लोगों के (श्रेष्ठम्) अत्यन्त प्रशंसा करने योग्य और (दर्शतम्) देखने योग्य (पेशः) सुन्दररूप और सुवर्ण तथा (स्तोमः) प्रशंसा (अधि) ऊपर (धायि) धारण की जाती है और जो (हि) जिससे (धीरासः) योगी विचारवाले (कवयः) बहुत शास्त्रों को देखे अर्थात विचारे हुए उपदेशक (विपश्चितः) सत्य और मिथ्या को पृथक् करनेवाले विद्वान् जन उपदेशक होवें जिसको और जिन (वः) आप लोगों को (एना) इस (ब्रह्मणा) वेद से (आ, वेदयामसि) जनाते हैं (तम्) उस और (तान्) उनकी (जुजुष्टन) सेवा करो अर्थात् उसमें और अपने में प्रीति करो इसके संग से विद्वान् (स्थ) होओ ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो विद्यार्थी जन श्रेष्ठ अध्यापक और विद्वान् यथार्थवक्ता जनों की सेवा करके शिक्षा ग्रहण करें, वे विद्वान् और लक्ष्मीवान् होवें ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वाजा ऋभवो ! यूयं येन वो श्रेष्ठं दर्शतं पेशः स्तोमोऽधिधायि ये हि धीरासः कवयो विपश्चित उपदेशकाः स्युर्यं यान् व एना ब्रह्मणाऽऽवेदयामसि तं तांश्च जुजुष्टनैतत्सङ्गेन विद्वांसः स्थ ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (श्रेष्ठम्) अतिशयेन प्रशस्यम् (वः) युष्माकम् (पेशः) सुन्दरं रूपं हिरण्यञ्च। पेश इति रूपनामसु पठितम्। (निघं०३.७) हिरण्यनामसु च। (निघं०१.२) (अधि) उपरि (धायि) ध्रियते (दर्शतम्) द्रष्टव्यम् (स्तोमः) प्रशंसा (वाजाः) प्राप्तसुशीला वेगवन्तः (ऋभवः) सूरयः (तम्) (जुजुष्टन) सेवध्वम् (धीरासः) योगिनो विचारवन्तः (हि) यतः (स्थ) भवत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (कवयः) बहुदर्शिन उपदेशकाः (विपश्चितः) सदसद्विवेका विद्वांसः (तान्) (वः) युष्मान् (एना) एनेन (ब्रह्मणा) वेदेन (आ) (वेदयामसि) ज्ञापयामः ॥७॥
भावार्थभाषाः - ये विद्यार्थिनः श्रेष्ठानध्यापकान् विदुष आप्तान् संसेव्य शिक्षां गृह्णीयुस्ते विद्वांसः श्रीमन्तश्च भवेयुः ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्यार्थी, श्रेष्ठ अध्यापक व विद्वान आप्त लोकांची सेवा करून शिक्षण ग्रहण करतात. ते विद्वान व श्रीमंत होतात. ॥ ७ ॥