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स वा॒ज्यर्वा॒ स ऋषि॑र्वच॒स्यया॒ स शूरो॒ अस्ता॒ पृत॑नासु दु॒ष्टरः॑। स रा॒यस्पोषं॒ स सु॒वीर्यं॑ दधे॒ यं वाजो॒ विभ्वाँ॑ ऋ॒भवो॒ यमावि॑षुः ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa vājy arvā sa ṛṣir vacasyayā sa śūro astā pṛtanāsu duṣṭaraḥ | sa rāyas poṣaṁ sa suvīryaṁ dadhe yaṁ vājo vibhvām̐ ṛbhavo yam āviṣuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। वा॒जी। अर्वा॑। सः। ऋषिः॑। व॒च॒स्यया॑। सः। शूरः॑। अस्ता॑। पृत॑नासु। दु॒स्तरः॑। सः। रा॒यः। पोष॑म्। सः। सु॒ऽवीर्य॑म्। द॒धे॒। यम्। वाजः॑। विऽभ्वा॑। ऋ॒भवः॑। यम्। आवि॑षुः ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:36» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ऋभवः) बुद्धिमान् जन (विभ्वा) व्यापक पदार्थ से (यम्) जिसको (आविषुः) विद्यायुक्त करें और (यम्) जिसको (वाजः) विज्ञानवान् धारण करता है (सः) वह (वचस्यया) अत्यन्त प्रशंसा के साथ (अर्वा) उत्तम गुणों को प्राप्त करानेवाला (वाजी) विज्ञानयुक्त (सः) वह (ऋषिः) वेदार्थ को जाननेवाला (सः) वह (पृतनासु) शत्रुओं की सेनाओं में (दुष्टरः) दुःख से उल्लङ्घन करने योग्य (शूरः) वीर पुरुष (अस्ता) शत्रुओं का फेंकनेवाला होता है (सः) वह (रायः) धन की (पोषम्) पुष्टि और (सः) वह (सुवीर्य्यम्) उत्तम बल और पराक्रम को (दधे) धारण करता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्वानों के संग से गुणों के ग्रहण करने की इच्छा करते हैं वे प्रशंसित, शत्रुओं से नहीं जीतने योग्य, धनाढ्य और पराक्रमी होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! ऋभवो विभ्वा यमाविषुर्यं वाजो दधाति स वचस्यया सहार्वा वाजी स ऋषिः सः पृतनासु दुष्टरः शूरोऽस्ता भवति स रायस्पोषं सः सुवीर्य्यं च दधे ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (वाजी) विज्ञानवान् (अर्वा) शुभगुणप्रापकः (सः) (ऋषिः) वेदार्थवेत्ता (वचस्यया) अतिशयितया प्रशंसया (सः) (शूरः) (अस्ता) शत्रूणां प्रक्षेप्ता (पृतनासु) शत्रुसेनासु (दुष्टरः) दुःखेनोल्लङ्घयितुं योग्यः (सः) (रायः) धनस्य (पोषम्) (सः) (सुवीर्य्यम्) सुष्ठु बलं पराक्रमम् (दधे) दधाति (यम्) (वाजः) विज्ञानवान् (विभ्वा) विभुना पदार्थेन (ऋभवः) मेधाविनः (यम्) (आविषुः) प्राप्तविद्यं कुर्वन्तु ॥६॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्वत्सङ्गेन गुणान् ग्रहीतुमिच्छन्ति ते प्रशंसिता शत्रुभिरजेया धनाढ्या वीर्य्यवन्तश्च जायन्ते ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्वानांच्या संगतीने गुण ग्रहण करण्याची इच्छा बाळगतात, ती प्रशंसित, शत्रूंना जिंकण्यास अजिंक्य, धनाढ्य व पराक्रमी असतात. ॥ ६ ॥