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तद्वो॑ वाजा ऋभवः सुप्रवाच॒नं दे॒वेषु॑ विभ्वो अभवन्महित्व॒नम्। जिव्री॒ यत्सन्ता॑ पि॒तरा॑ सना॒जुरा॒ पुन॒र्युवा॑ना च॒रथा॑य॒ तक्ष॑थ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tad vo vājā ṛbhavaḥ supravācanaṁ deveṣu vibhvo abhavan mahitvanam | jivrī yat santā pitarā sanājurā punar yuvānā carathāya takṣatha ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। वः॒। वा॒जाः॒। ऋ॒भ॒वः॒। सु॒ऽप्र॒वा॒च॒नम्। दे॒वेषु॑। वि॒ऽभ्वः॒। अ॒भ॒व॒त्। म॒हि॒ऽत्व॒नम्। जिव्री॒ इति॑। यत्। सन्ता॑। पि॒तरा॑। स॒ना॒ऽजुरा॑। पुनः॑। युवा॑ना। च॒रथा॑य। तक्ष॑थ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:36» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजाः) अन्न आदिकों से युक्त (ऋभवः) बुद्धिमानो ! (विभ्वः) सकल विद्याओं में व्याप्त (यत्) जो (वः) आप लोगों के प्रति (देवेषु) विद्वानों में (महित्वनम्) प्रतिष्ठा को (सुप्रवाचनम्) उत्तम प्रकार पढ़ाना और उपदेश करना (अभवत्) होवे (तत्) उसको प्राप्त होकर (जिव्री) जीवते हुए (सन्ता) विद्यमान और (सनाजुरा) सदा वृद्धावस्था को प्राप्त (पितरः) माता-पिता (चरथाय) चलने, विज्ञान वा भोजन के लिये (पुनः) फिर (युवाना) युवावस्था को प्राप्त हुए (तक्षथ) करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे बुद्धिमान् जनो ! जो आप लोग विद्वानों में स्थित होकर उनसे अध्ययन और उपदेश करें तो ज्ञानवृद्ध होने से युवावस्था को प्राप्त हुए भी वृद्ध होकर सत्कृत होवें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वाजा ऋभवो ! विभ्वो यद्वो युष्मान् प्रति देवेषु महित्वनं सुप्रवाचनमभवत् तत्प्राप्य जिव्री सन्ता सनाजुरा पितरा चरथाय पुनर्युवाना तक्षथ ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) (वः) युष्मान् (वाजाः) अन्नादियुक्ताः (ऋभवः) मेधाविनः (सुप्रवाचनम्) सुष्ठ्वध्यापनमुपदेशनं च (देवेषु) विद्वत्सु (विभ्वः) सकलविद्यासु व्याप्ताः (अभवत्) भवेत् (महित्वनम्) महत्त्वम् (जिव्री) जीवन्तौ (यत्) (सन्ता) सन्तौ विद्यमानौ (पितरा) पितरौ (सनाजुरा) सदा जरावस्थास्थौ (पुनः) (युवाना) प्राप्तयौवनौ (चरथाय) गमनाय विज्ञानाय भोजनाय वा (तक्षथ) कुरुत ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे धीमन्तो जना ! यदि युष्माभिर्विद्वत्सु स्थित्वैतेभ्योऽध्ययनमुपदेशनं च क्रियेत तर्हि ज्ञानवृद्धत्वाद्युवानः सन्तोऽपि वृद्धा भूत्वा सत्कृताः स्युः ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे बुद्धिमानांनो! जर तुम्ही विद्वानांकडून अध्ययन व उपदेश ग्रहण केलात तर ज्ञानवृद्ध झाल्यामुळे युवावस्थेत असूनही वृद्ध (अनुभवी) बनून धन्य व्हाल. ॥ ३ ॥