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किं॒मयः॑ स्विच्चम॒स ए॒ष आ॑स॒ यं काव्ये॑न च॒तुरो॑ विच॒क्र। अथा॑ सुनुध्वं॒ सव॑नं॒ मदा॑य पा॒त ऋ॑भवो॒ मधु॑नः सो॒म्यस्य॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kimmayaḥ svic camasa eṣa āsa yaṁ kāvyena caturo vicakra | athā sunudhvaṁ savanam madāya pāta ṛbhavo madhunaḥ somyasya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कि॒म्ऽमयः॑। स्वि॒त्। च॒म॒सः। ए॒षः। आ॒स॒। यम्। काव्ये॑न। च॒तुरः॑। वि॒ऽच॒क्र। अथ॑। सु॒नु॒ध्व॒म्। सव॑नम्। मदा॑य। पा॒त। ऋ॒भ॒वः॒। मधु॑नः। सो॒म्यस्य॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:35» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:5» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋभवः) बुद्धिमानो ! (एषः) यह (चमसः) यज्ञपात्र जिससे कि आचमन करता है (स्वित्) सो क्या (किंमयः) किसी को फेंकता (आस) हुआ है (यम्) जिसको (काव्येन) कवियों के बनाये गये कर्म से (चतुरः) चार भाग आप लोग (विचक्र) विधान करते हैं और (मदाय) आनन्द के लिये (मधुनः) ज्ञान से उत्पन्न (सोमस्य) ऐश्वर्य्य में श्रेष्ठ पदार्थ के (सवनम्) कार्य्य की सिद्धि करनेवाले को (सुनुध्वम्) उत्पन्न करो (अथ) इसके अनन्तर इसकी (पात) रक्षा करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - कार्य्यों के साधन कैसे और काहे के बने हुए होते हैं, यह पूछा जाता है। जो-जो विद्या और युक्ति से बनाया गया हो, वह-वह साधन कार्य्य की सिद्धि करनेवाला होता है, यह उत्तर है ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे ऋभव ! एष चमसः स्वित्किंमय आस यं काव्येन चतुरो यूयं विचक्र मदाय मधुनः सोम्यस्य सवनं सुनुध्वमथैतत्पात ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (किंमयः) यः किं मिनोति सः (स्वित्) प्रश्ने (चमसः) आचामति येन सः (एषः) (आस) (यम्) (काव्येन) कविना निर्मितेन विधिना (चतुरः) एतत्सङ्ख्याकान् (विचक्र) विदधति (अथ) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (सुनुध्वम्) निष्पादयत (सवनम्) कार्य्यसिद्ध्यर्थं कर्म (मदाय) आनन्दाय (पात) रक्षत (ऋभवः) मेधाविनः (मधुनः) ज्ञानजन्यस्य (सोम्यस्य) सोमैश्वर्य्ये साधोः ॥४॥
भावार्थभाषाः - कर्म्मसाधनानि कीदृशानि किंमयानि भवन्तीति पृच्छ्यते यद्यद्विद्यायुक्तिभ्यां निर्मितं स्यात् तत्तत्साधनं कार्य्यसिद्धिकरं भवतीत्युत्तरम् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - कार्याची साधने कशी व का बनलेली असतात हे विचारले जाते. जे जे विद्या व युक्तीने तयार केलेले असते ते ते साधन कार्य सिद्धी करणारे असते, हे उत्तर आहे. ॥ ४ ॥