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व्य॑कृणोत चम॒सं च॑तु॒र्धा सखे॒ वि शि॒क्षेत्य॑ब्रवीत। अथै॑त वाजा अ॒मृत॑स्य॒ पन्थां॑ ग॒णं दे॒वाना॑मृभवः सुहस्ताः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vy akṛṇota camasaṁ caturdhā sakhe vi śikṣety abravīta | athaita vājā amṛtasya panthāṁ gaṇaṁ devānām ṛbhavaḥ suhastāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि। अ॒कृ॒णो॒त॒। च॒म॒सम्। च॒तुः॒ऽधा। सखे॑। वि। शि॒क्ष॒। इति॑। अ॒ब्र॒वी॒त॒। अथ॑। ऐ॒त॒। वा॒जाः॒। अ॒मृत॑स्य। पन्था॑म्। ग॒णम्। दे॒वाना॑म्। ऋ॒भ॒वः॒। सु॒ऽह॒स्ताः॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:35» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:5» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सखे) मित्र ! जैसे यथार्थवक्ता विद्वान् जन सत्यविद्या की शिक्षा देते हैं, वैसे आप (शिक्ष) शिक्षा देओ और हे (वाजाः) विज्ञानयुक्त (सुहस्ताः) अच्छे हाथोंवाले (ऋभवः) बुद्धिमान् जनो ! जैसे मित्र वैसे आप लोग (चमसम्) यज्ञ सिद्ध करानेवाले पात्र के सदृश कार्य्य को (चतुर्धा) चार प्रकार (वि) विशेषता से (अकृणोत) करो और शास्त्रों का (वि) विशेष करके (अब्रवीत) उपदेश देओ। (अथ) इसके अनन्तर (इति) इस प्रकार से (देवानाम्) विद्वानों के (गणम्) समूह को और (अमृतस्य) नाशरहित मोक्ष के (पन्थाम्) मार्ग को (ऐत) प्राप्त होओ ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! परमेश्वर आप लोगों के प्रति चार प्रकार के पुरुषार्थ को सिद्ध करो, ऐसा कहता है कि जो परस्पर मित्र होकर कार्य्य की सिद्धि के लिये प्रयत्न करो तो धर्म्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि आप लोगों को विना संशय प्राप्त होवे ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सखे ! यथाप्ता विद्वांसो सत्यविद्यां शिक्षन्ते तथा त्वं शिक्ष। हे वाजाः सुहस्ता ऋभवो ! यथा सखायस्तथा यूयं चमसं चतुर्धा व्यकृणोत शास्त्राणि व्यब्रवीत। अथेति देवानां गणममृतस्य पन्थामैत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वि) विशेषेण (अकृणोत) (चमसम्) यथा यज्ञसाधनम् (चतुर्धा) (सखे) (वि) (शिक्ष) अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (इति) (अब्रवीत) उपदिशत (अथ) (ऐत) प्राप्नुत (वाजाः) (अमृतस्य) नाशरहितस्य मोक्षस्य (पन्थाम्) (गणम्) समूहम् (देवानाम्) विदुषाम् (ऋभवः) मेधाविनः (सुहस्ताः) ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! परमेश्वरो युष्मान् चतुर्विधं पुरुषार्थं साध्नुतेति ब्रूते यदि सखायो भूत्वा कार्य्यसिद्धये प्रयत्नं कुर्य्युस्तर्हि धर्मार्थकाममोक्षसिद्धिर्युष्मानसंशयं प्राप्नुयात् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! परमेश्वर तुम्हाला चार प्रकारचे पुरुषार्थ करा असे सांगतो. जर परस्पर मित्र बनून कार्यसिद्धीसाठी प्रयत्न केला, तर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष निःसंशय तुम्हाला प्राप्त होईल. ॥ ३ ॥