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स॒जोष॑स आदि॒त्यैर्मा॑दयध्वं स॒जोष॑स ऋभवः॒ पर्व॑तेभिः। स॒जोष॑सो॒ दैव्ये॑ना सवि॒त्रा स॒जोष॑सः॒ सिन्धु॑भी रत्न॒धेभिः॑ ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sajoṣasa ādityair mādayadhvaṁ sajoṣasa ṛbhavaḥ parvatebhiḥ | sajoṣaso daivyenā savitrā sajoṣasaḥ sindhubhī ratnadhebhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒ऽजोष॑सः। आ॒दि॒त्यैः। मा॒द॒य॒ध्व॒म्। स॒ऽजोष॑सः। ऋ॒भ॒वः॒। पर्व॑तेभिः। स॒ऽजोष॑सः। दैव्ये॑न। स॒वि॒त्रा। स॒ऽजोष॑सः। सिन्धु॑ऽभिः। र॒त्न॒ऽधेभिः॑ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:34» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:4» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋभवः) बुद्धिमानो ! आप लोग (आदित्यैः) अड़तालीस वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य्य और विद्या का ग्रहण जिन्होंने किया उनके साथ (सजोषसः) समान उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव के सेवन करने और (पर्वतेभिः) मेघों के साथ (सजोषसः) समान उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव के सेवन करने और (दैव्येन) उत्तम स्वरूपवाले (सवित्रा) बिजुलीरूप के साथ (सजोषसः) तुल्य प्रीति सेवन करने (रत्नधेभिः) रत्नों को धारण करनेवाले (सिन्धुभिः) नदी वा समुद्रों के साथ (सजोषसः) उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव के सेवन करनेवाले हुए आप हम लोगों को परस्पर (मादयध्वम्) आनन्दित कीजिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पूर्ण विद्वानों के साथ मेल करके पदार्थविद्या का ग्रहण करते हैं, वे विमान आदि को रचके मेघमण्डल वा उससे ऊपर समुद्र और नदियों में सुख से विहार करने के योग्य होते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे ऋभवो ! यूयमादित्यैः सह सजोषसः पर्वतेभिः सह सजोषसः दैव्येना सवित्रा सह सजोषसो रत्नधेभिः सिन्धुभिः सह सजोषसः सन्तोऽस्मान् मादयध्वम् ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सजोषसः) समानोत्तमगुणकर्मस्वभावसेविनः (आदित्यैः) कृताष्टाचत्वारिंशद् ब्रह्मचर्य्यविद्यैः (मादयध्वम्) परस्परानानन्दयत (सजोषसः) (ऋभवः) मेधाविनः (पर्वतेभिः) मेघैः सह (सजोषसः) (दैव्येन) दिव्यस्वरूपेण। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सवित्रा) विद्युद्रूपेण (सजोषसः) (सिन्धुभिः) नदीभिः समुद्रैर्वा (रत्नधेभिः) ये रत्नानि द्रव्याणि दधति तैः ॥८॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः पूर्णविद्यैः सह सङ्गत्य पदार्थविद्यां गृह्णन्ति ते विमानादीनि निर्माय मेघमण्डले तत ऊर्ध्वं वा समुद्रेषु नदीषु च सुखेन विहर्त्तुमर्हन्ति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे पूर्ण विद्वानांचा संग करून पदार्थ विद्येचे ग्रहण करतात ती विमान इत्यादीची निर्मिती करून मेघमंडलात किंवा समुद्र व नद्यांमध्ये सुखाने विहार करतात. ॥ ८ ॥