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ये हरी॑ मे॒धयो॒क्था मद॑न्त॒ इन्द्रा॑य च॒क्रुः सु॒युजा॒ ये अश्वा॑। ते रा॒यस्पोषं॒ द्रवि॑णान्य॒स्मे ध॒त्त ऋ॑भवः क्षेम॒यन्तो॒ न मि॒त्रम् ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ye harī medhayokthā madanta indrāya cakruḥ suyujā ye aśvā | te rāyas poṣaṁ draviṇāny asme dhatta ṛbhavaḥ kṣemayanto na mitram ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। हरी॒ इति॑। मे॒धया॑। उ॒क्था। मद॑न्तः। इन्द्रा॑य। च॒क्रुः। सु॒ऽयुजा॑। ये अश्वा॑। ते। रा॒यः। पोष॑म्। द्रवि॑णानि। अ॒स्मे इति॑। ध॒त्त। ऋ॒भ॒वः॒। क्षे॒म॒ऽयन्तः॑। न। मि॒त्रम् ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:33» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:2» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ऋभवः) बुद्धिमानो ! (ये) जो (मेधया) बुद्धि (उक्था) और प्रशंसाओं से (मदन्तः) आनन्द करते हुए (इन्द्राय) ऐश्वर्य्य के लिये (हरी) घोड़ों के सदृश अग्नि और जल को (अश्वा) शीघ्र चलनेवाले और (सुयुजा) उत्तम प्रकार जुड़े हुए (चक्रुः) करते हैं और (ये) जो इस विद्या को जानें (ते) वे आप लोग (मित्रम्) मित्र की (क्षेमयन्तः) रक्षा करते हुए के (न) सदृश (अस्मे) हम लोगों के निमित्त (रायः, पोषम्) धन आदि की पुष्टि को (द्रविणानि) तथा द्रव्यों वा यशों को (धत्त) धारण करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! आप लोग सृष्टि के क्रम से पदार्थविद्याओं को प्राप्त होकर अन्य जनों को बोध कराय के अपने सदृश करके धनाढ्य करो ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे ऋभवो ! ये मेधयोक्था मदन्त इन्द्राय हरी अश्वा सुयुजा चक्रुः ये चैतद्विद्यां जानीयुस्ते यूयं मित्रं क्षेमयन्तो नाऽस्मे रायस्पोषं द्रविणानि धत्त ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) (हरी) तुरङ्गाविवाग्निजले (मेधया) प्रज्ञया (उक्था) प्रशंसनैः (मदन्तः) आनन्दन्तः (इन्द्राय) ऐश्वर्य्याय (चक्रुः) कुर्वन्ति (सुयुजा) यो सुष्ठु युङ्क्तस्तौ (ये) (अश्वा) आशुगामिनौ (ते) (रायः) धनादेः (पोषम्) पुष्टिम् (द्रविणानि) द्रव्याणि यशांसि वा (अस्मे) अस्मासु (धत्त) धरत (ऋभवः) मेधाविनः (क्षेमयन्तः) क्षेमं रक्षणं कुर्वन्तः (न) इव (मित्रम्) सुहृदम् ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! भवन्तो सृष्टिक्रमेण पदार्थविद्याः प्राप्याऽन्यान् बोधयित्वा स्वसदृशान् कृत्वा धनाढ्यान् कुर्वन्तु ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! तुम्ही सृष्टिक्रमाने पदार्थ विद्या प्राप्त करून इतरांना बोध करवून आपल्याप्रमाणे बनवून धनवान करा. ॥ १० ॥