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व॒यमि॑न्द्र॒ त्वे सचा॑ व॒यं त्वा॒भि नो॑नुमः। अ॒स्माँअ॑स्माँ॒ इदुद॑व ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vayam indra tve sacā vayaṁ tvābhi nonumaḥ | asmām̐-asmām̐ id ud ava ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व॒यम्। इ॒न्द्र॒। त्वे। इति॑। सचा॑। व॒यम्। त्वा॒। अ॒भि। नो॒नु॒मः॒। अ॒स्मान्ऽअ॑स्मान्। इत्। उत्। अ॒व॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:32» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) राजन् ! जो (वयम्) हम लोग (त्वे) आप में (सचा) सत्य आचरण से वर्त्ताव करें और (वयम्) हम लोग (त्वा) आपको (अभि, नोनुमः) सब प्रकार निरन्तर नमस्कार करते हैं, उन (अस्मानस्मान्) हम लोगों की हम लोगों की निरन्तर (इत्, उत) निश्चित ही (अव) रक्षा करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जैसे हम लोग आप में सत्यभाव से वर्त्ताव और प्रीति से आप का सत्कार करें, वैसे ही आप हम लोगों की निरन्तर वृद्धि करें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! ये वयं त्वे सचा वर्त्तेमहि वयं त्वाभिनोनुमस्तानस्मानस्मान् सततमिदुदव ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वयम्) (इन्द्र) राजन् (त्वे) त्वयि (सचा) सत्याचारेण (वयम्) (त्वा) त्वाम् (अभि, नोनुमः) भृशं नताः स्मः (अस्मानस्मान्) (इत्) एव (उत्) (अव) रक्ष ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यथा वयं त्वयि सत्यभावेन वर्त्तेमहि प्रीत्या भवन्तं सत्कुर्याम तथैव भवानस्मान्त्सततं वर्धयेत् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! जसे आम्ही तुझ्याशी सत्याने वर्तन करून प्रीतीने तुझा सत्कार करतो तसेच तू आमची निरंतर वृद्धी कर. ॥ ४ ॥