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दश॑ ते क॒लशा॑नां॒ हिर॑ण्यानामधीमहि। भू॒रि॒दा अ॑सि वृत्रहन् ॥१९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

daśa te kalaśānāṁ hiraṇyānām adhīmahi | bhūridā asi vṛtrahan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दश॑। ते॒। क॒लशा॑नाम्। हिर॑ण्यानाम्। अ॒धी॒म॒हि। भू॒रि॒ऽदाः। अ॒सि॒। वृ॒त्र॒॒ऽह॒न् ॥१९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:32» मन्त्र:19 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:30» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृत्रहन्) शत्रुओं के नाश करनेवाले ! जिससे आप (भूरिदाः) बहुतों के देनेवाले (असि) हो इससे (ते) आपके (हिरण्यानाम्) सुवर्ण के बने हुए (कलशानाम्) घटों के (दश) दशसंख्यायुक्त समूह को हम लोग (अधीमहि) प्राप्त होवें ॥१९॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य बहुत देनेवाला होता है, उसके मित्र बहुत होते हैं ॥१९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वृत्रहन् ! यतस्त्वं भूरिदा असि तस्मात्ते हिरण्यानां कलशानां दशाधीमहि ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दश) (ते) तव (कलशानाम्) घटानाम् (हिरण्यानाम्) (अधीमहि) प्राप्नुयाम (भूरिदाः) बहूनां दाता (असि) (वृत्रहन्) शत्रुहन्ता ॥१९॥
भावार्थभाषाः - यो मनुष्यो बहुप्रदो भवति तस्य मित्राणि बहूनि जायन्ते ॥१९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो माणूस दानी असतो त्याचे मित्र खूप असतात. ॥ १९ ॥