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आ तू न॑ इन्द्र वृत्रहन्न॒स्माक॑म॒र्धमा ग॑हि। म॒हान्म॒हीभि॑रू॒तिभिः॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā tū na indra vṛtrahann asmākam ardham ā gahi | mahān mahībhir ūtibhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। तु। नः॒। इ॒न्द्र॒। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। अ॒स्माक॑म्। अ॒र्धम्। आ। ग॒हि॒। म॒हान्। म॒हीभिः॑। ऊ॒तिऽभिः॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:32» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:27» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब चौबीस ऋचावाले बत्तीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में इन्द्रपदवाच्य राजप्रजागुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृत्रहन्) मेघ को नाश करनेवाले सूर्य के सदृश (इन्द्र) राजन् ! आप (अस्माकम्) हम लोगों की (अर्द्धम्) वृद्धि को (आ, गहि) प्राप्त हूजिये और (महीभिः) बड़ी (ऊतिभिः) ऊतियों अर्थात् रक्षादिकों के साथ (महान्) बढ़े हुए (नः) हम लोगों को (तु) फिर (आ) प्राप्त होओ ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो आप हम लोगों की वृद्धि करें तो हम लोग आपकी अतिवृद्धि करें ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेन्द्रपदवाच्यराजप्रजागुणानाह ॥

अन्वय:

हे वृत्रहन्निन्द्र ! त्वमस्माकमर्द्धमागहि महीभिरूतिभिस्सह महान् सन्नोऽस्माँस्त्वागहि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (तु) पुनः (नः) अस्मान् (इन्द्र) राजन् ! (वृत्रहन्) यो वृत्रं हन्ति सूर्यस्तद्वत् (अस्माकम्) (अर्द्धम्) वर्धनम् (आ, गहि) आगच्छ (महान्) (महीभिः) महतीभिः (ऊतिभिः) रक्षादिभिः ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदि भवानस्माकं वृद्धिं कुर्यात्तर्हि वयं भवन्तमति वर्धयेम ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, राजा, प्रजा, अध्यापक व उपदेशकांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - हे राजा! जर तू आमची वृद्धी केलीस तर आम्हीही तुझी वृद्धी करू. ॥ १ ॥