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अ॒स्माकं॑ धृष्णु॒या रथो॑ द्यु॒माँ इ॒न्द्रान॑पच्युतः। ग॒व्युर॑श्व॒युरी॑यते ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmākaṁ dhṛṣṇuyā ratho dyumām̐ indrānapacyutaḥ | gavyur aśvayur īyate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्माक॑म्। धृ॒ष्णु॒ऽया। रथः॑। द्यु॒ऽमान्। इ॒न्द्र॒। अन॑पऽच्युतः। ग॒व्युः। अ॒श्व॒ऽयुः। ई॒य॒ते॒ ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:31» मन्त्र:14 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजाप्रजा धर्मविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) राजन् ! जो (अस्माकम्) हम लोगों को (धृष्णुया) दृढ़ता से युक्त (द्युमान्) बहुत कलायन्त्र आदि से प्रकाशित (अनपच्युतः) घटने से रहित (गव्युः) बहुत गौओं और (अश्वयुः) बहुत घोड़ों के बल से युक्त (रथः) शीघ्र पहुँचानेवाला विमान आदि विशेष वाहन (ईयते) जाता है, उसके साथ शत्रुओं को जीतिये ॥१४॥
भावार्थभाषाः - राजा और प्रजाजन ऐसा मानें कि जो राजा के पदार्थ वे हम लोगों के और जो हम लोगों के वे राजा के हैं ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजाधर्मविषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! योऽस्माकं धृष्णुया द्युमाननपच्युतो गव्युरश्वयू रथ ईयते तेन सह शत्रून् विजयस्व ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्माकम्) (धृष्णुया) दृढत्वेन युक्तः (रथः) सद्यो गमयिता विमानादियानविशेषः (द्युमान्) बहुकलायन्त्रादिप्रकाशित (इन्द्र) राजन् ! (अनपच्युतः) अपचयरहितः (गव्युः) बहवो गावो विद्यन्ते यस्मिन् सः (अश्वयुः) बह्वश्वबलयुक्तः (ईयते) गच्छति ॥१४॥
भावार्थभाषाः - राजा प्रजाजनाश्चैवं मन्येरन् ये राज्ञः पदार्थास्तेऽस्माकं येऽस्माकं ते च राज्ञस्सन्तीति ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व प्रजेने असे मानावे की, जे राजाचे पदार्थ आहेत ते आमचे आहेत व जे आमचे आहेत ते राजाचे आहेत. ॥ १४ ॥