वांछित मन्त्र चुनें

किमादु॒तासि॑ वृत्रह॒न्मघ॑वन्मन्यु॒मत्त॑मः। अत्राह॒ दानु॒माति॑रः ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kim ād utāsi vṛtrahan maghavan manyumattamaḥ | atrāha dānum ātiraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

किम्। आत्। उ॒त। अ॒सि॒। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। मघ॑ऽवन्। म॒न्यु॒मत्ऽत॑मः। अत्र॑। अह॑। दानु॑म्। आ। अ॒ति॒रः॒ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:20» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) श्रेष्ठ धनयुक्त (वृत्रहन्) शत्रुओं के नाश करनेवाले ! (मन्युमत्तमः) प्रशंसित क्रोधयुक्त आप सूर्य्य मेघ को जैसे वैसे (दानुम्) देनेवाले का (आ, अतिरः) नाश करते हैं, (अत्र, अह, आत्, किम्, उत) अहह इस विषय में तो क्या अनन्तर आप राजा भी (असि) हो ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो राजा दुष्टों के ऊपर अति क्रोध करने और श्रेष्ठों में अत्यन्त शान्ति रखनेवाला होता है, वही राज्य बढ़ा सकता है ॥७॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मघवन् वृत्रहन् ! मन्युमत्तमस्त्वं सूर्य्यो मेघमिव दानुमातिरोऽत्राहाऽऽत् किमुत राजाऽसि ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (किम्) (आत्) आनन्तर्य्ये (उत) (असि) (वृत्रहन्) शत्रुनाशक (मघवन्) प्रशंसितधन (मन्युमत्तमः) प्रशंसितो मन्युः क्रोधो यस्य सोऽतिशयितः (अत्र) (अह) (दानुम्) दातारम् (आ) (अतिरः) हंसि ॥७॥
भावार्थभाषाः - यो राजा दुष्टानामुपर्य्यतिक्रोधकृच्छ्रेष्ठेषु शान्ततमो भवति स एव राज्यं वर्द्धयितुमर्हति ॥७॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा दुष्टांवर अत्यंत क्रोध करतो व श्रेष्ठांशी शांततेने वागतो तोच राज्य वाढवू शकतो. ॥ ७ ॥