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विश्वे॑ च॒नेद॒ना त्वा॑ दे॒वास॑ इन्द्र युयुधुः। यदहा॒ नक्त॒माति॑रः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśve caned anā tvā devāsa indra yuyudhuḥ | yad ahā naktam ātiraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वे॑। च॒न। इत्। अ॒ना। त्वा॒। दे॒वासः॑। इ॒न्द्र॒। यु॒यु॒धुः॒। यत्। अहा॑। नक्त॑म्। आ। अति॑रः ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) शत्रुओं के विदीर्ण करनेवाले (यत्) जो (विश्वे इत्) सभी (देवासः) विद्वान् जन (अना) प्रतिज्ञास्वरूप (अहा) दिनों और (नक्तम्) रात्रि को (त्वा) आपका आश्रय लेकर शत्रुओं के साथ (युयुधुः) युद्ध करते हैं, उनके (चन) भी साथ आप शत्रुओं का (आ, अतिरः) नाश करिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - राजा को चाहिये कि भृत्यजन उत्तम शिक्षित और श्रेष्ठ रक्खें, जिससे दिन-रात्रि शत्रु लोग छिपे हुए रहें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! यद्ये विश्व इद् देवासोऽनाऽहा नक्तं त्वाश्रित्य शत्रुभिः सह युयुधुस्तैश्चन त्वं शत्रूनातिरः ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वे) (सर्वे) (चन) अपि (इत्) (अना) प्रणात्मकानि (त्वा) त्वाम् (देवासः) विद्वांसः (इन्द्र) शत्रूणां विदारक (युयुधुः) युध्यन्ते (यत्) ये (अहा) दिनानि (नक्तम्) रात्रिम् (आ, अतिरः) हन्याः ॥३॥
भावार्थभाषाः - राज्ञा भृत्याः सुशिक्षिताः श्रेष्ठ रक्षणीया येनाहर्निशं शत्रवो निलीना निवसेयुः ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाने सुशिक्षित सेवक ठेवावेत. ज्यामुळे अहर्निश शत्रू लपून राहावेत. ॥ ३ ॥