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वा॒मंवा॑मं त आदुरे दे॒वो द॑दात्वर्य॒मा। वा॒मं पू॒षा वा॒मं भगो॑ वा॒मं दे॒वः करू॑ळती ॥२४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vāmaṁ-vāmaṁ ta ādure devo dadātv aryamā | vāmam pūṣā vāmam bhago vāmaṁ devaḥ karūḻatī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वा॒मम्ऽवा॑मम्। ते॒। आ॒ऽदु॒रे॒। दे॒वः। द॒दा॒तु॒। अ॒र्य॒मा। वा॒मम्। पू॒षा। वा॒मम्। भगः॑। वा॒मम्। दे॒वः। करू॑ळती ॥२४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:24 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:24


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों के उपदेशविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आदुरे) शत्रुओं के नाश करनेवाले राजन् ! (करूळती) जिसके कारीगरों की कामना करनेवाला विद्यमान वह (देवः) विजय का लेनेवाला (ते) आपके लिये (वामंवामम्) प्रशंसा करने योग्य प्रशंसा करने योग्य को (ददातु) देवे और जिसके कारीगरों की कामना करनेवाला विद्यमान वह (अर्य्यमा) न्यायाधीश (वामम्) प्राप्त होने योग्य पदार्थ दे और जिसके कारीगरों की कामना करनेवाला विद्यमान वह (पूषा) पुष्टि करनेवाला (वामम्) सेवन करने योग्य धन को दे और जिसके कारीगरों की कामना करनेवाला विद्यमान वह (भगः) ऐश्वर्य्य से युक्त (देवः) प्रकाशमान (वामम्) श्रेष्ठ विज्ञान को देवे, उन सब की आप सदा सेवा करो ॥२४॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो लोग सत्य उपदेश, सत्य न्याय, यथार्थ विद्या और क्रिया की आपको शिक्षा देवें, उन सब का आप निरन्तर सत्कार करो ॥२४॥ इस सूक्त में सूर्य, मेघ, मनुष्य, विद्वान् और राजा के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥२४॥ यह तीसवाँ सूक्त और तेईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वदुपदेशविषयमाह ॥

अन्वय:

हे आदुरे राजन् ! यः करूळती देवस्ते वामंवामं ददातु यः करूळत्यर्य्यमा वामं ददातु यः करूळती पूषा वामं प्रयच्छतु यः करूळती भगो देवो वामं ददातु तान्सर्वांस्त्वं सदा सेवयेः ॥२४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वामंवामम्) प्रशस्यं प्रशस्यम्। वाम इति प्रशस्यनामसु पठितम्। (निघं०३.८) (ते) तुभ्यम् (आदुरे) शत्रूणां विदारक (देवः) विजयप्रदाता (ददातु) (अर्य्यमा) न्यायेशः (वामम्) प्राप्तव्यम् (पूषा) पुष्टिकर्त्ता (वामम्) भजनीयं धनम् (भगः) ऐश्वर्यवान् (वामम्) श्रेष्ठं विज्ञानम् (देवः) प्रकाशमानः (करूळती) यः करूनूढा कामयते स करूळतः सोऽस्यास्तीति ॥२४॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! ये सत्यमुपदेशं सत्यं न्यायं यथार्थां विद्यां क्रियां च त्वां शिक्षेरँस्तान् सर्वास्त्वं सततं सत्कुर्यादिति ॥२४॥ अत्र सूर्यमेघमनुष्यविद्वद्राजगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥२४॥ इति त्रिंशत्तमं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा, जे लोक सत्याचा उपदेश, सत्य, न्याय, यथार्थ विद्या व क्रिया यांचे शिक्षण देतात त्या सर्वांचा तू निरंतर सत्कार कर. ॥ २४ ॥