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उ॒त नू॒नं यदि॑न्द्रि॒यं क॑रि॒ष्या इ॑न्द्र॒ पौंस्य॑म्। अ॒द्या नकि॒ष्टदामि॑नत् ॥२३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta nūnaṁ yad indriyaṁ kariṣyā indra pauṁsyam | adyā nakiṣ ṭad ā minat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। नू॒नम्। यत्। इ॒न्द्रि॒यम्। क॒रि॒ष्याः। इ॒न्द्र॒। पौंस्य॑म्। अ॒द्य। नकिः॑। तत्। आ। मि॒न॒त् ॥२३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:23 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:23


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) सब के रक्षा करनेवाले आप (अद्य) आज (यत्) जो (नूनम्) निश्चित (इन्द्रियम्) इन्द्रिय को (उत) और (पौंस्यम्) पुरुषों में श्रेष्ठ कर्म्म को (करिष्याः) करें (तत्) उसकी कोई भी (नकिः) नहीं (आ, मिनत्) हिंसा करे ॥२३॥
भावार्थभाषाः - जो राजा वर्त्तमान समय में बल को बढ़ा सके, वह शत्रुओं से अजित हुआ निश्चय विजय को प्राप्त होवे ॥२३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्रत्वमद्य यन्नूनमिन्द्रियमुत पौंस्यं करिष्यास्तत् कोऽपि नकिरामिनत् ॥२३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (नूनम्) निश्चितम् (यत्) (इन्द्रियम्) (करिष्याः) (इन्द्र) सर्वरक्षक (पौंस्यम्) पुंसु साधुः (अद्य) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नकिः) (तत्) (आ) (मिनत्) हिंस्यात् ॥२३॥
भावार्थभाषाः - यो राजा वर्त्तमानसमये बलं वर्द्धयितुं शक्नुयात् शत्रुभिरजितस्सन् निश्चितं विजयं प्राप्नुयात् ॥२३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा राज्य करीत असताना बल वाढवितो तो शत्रूंना अजिंक्य असून निश्चित विजय प्राप्त करतो. ॥ २३ ॥