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स घेदु॒तासि॑ वृत्रहन्त्समा॒न इ॑न्द्र॒ गोप॑तिः। यस्ता विश्वा॑नि चिच्यु॒षे ॥२२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa ghed utāsi vṛtrahan samāna indra gopatiḥ | yas tā viśvāni cicyuṣe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। घ॒। इत्। उ॒त। अ॒सि॒। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। स॒मा॒नः। इ॒न्द्र॒। गोऽप॑तिः। यः। ता। विश्वा॑नि। चि॒च्यु॒षे ॥२२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:22 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:22


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृत्रहन्) शत्रुओं के नाश करनेवाले (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के कर्त्ता ! (यः) जो (गोपतिः) पृथिवी के स्वामी (समानः) सूर्य्य के सदृश आप (ता) उन (विश्वानि) सब की (चिच्युषे) वृद्धि करते (घ) ही हो (स, इत्) वही बलवान् (उत) और सुखी (असि) होते हैं ॥२२॥
भावार्थभाषाः - जो राजा सूर्य्य के सदृश न्याय के प्रकाश से रागद्वेषवाला होता हुआ सम्पूर्ण राज्य का पालनकर्त्ता है, वही गणना करने योग्य होता है ॥२२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे वृत्रहन्निन्द्र ! यो गोपतिः समानस्त्वं ता विश्वानि चिच्युषे घ स इद् बलवानुतापि सुख्यसि ॥२२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (घ) एव (इत्) (उत) अपि (असि) (वृत्रहन्) शत्रुविदारक (समानः) सूर्येण तुल्यः (इन्द्र) पुष्कलैश्वर्य्यकारक (गोपतिः) पृथिव्याः स्वामी (यः) (ता) तानि (विश्वानि) सर्वाणि (चिच्युषे) च्यावयसि ॥२२॥
भावार्थभाषाः - यो राजा सूर्य्यवन्न्यायप्रकाशेन रागद्वेषवान् सन् सर्वं राष्ट्रं पालयति स एव गणनीयो जायते ॥२२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा सूर्याप्रमाणे न्यायाच्या प्रकाशाने तळपत राहणारा, चमकणारा असून संपूर्ण राज्याचा पालनकर्ता आहे तोच गणना करण्यायोग्य असतो. ॥ २२ ॥