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अस्वा॑पयद्द॒भीत॑ये स॒हस्रा॑ त्रिं॒शतं॒ हथैः॑। दा॒साना॒मिन्द्रो॑ मा॒यया॑ ॥२१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asvāpayad dabhītaye sahasrā triṁśataṁ hathaiḥ | dāsānām indro māyayā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अस्वा॑पयत्। द॒भीत॑ये। स॒हस्रा॑। त्रिं॒शत॑म्। हथैः॑। दा॒साना॑म्। इन्द्रः॑। मा॒यया॑ ॥२१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:21 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:21


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (इन्द्रः) राजा (मायया) बुद्धि से (दासानाम्) सेवकों और शत्रुओं के (हथैः) हननसाधनों से (दभीतये) हिंसन करने के लिये (सहस्रा) असंख्य (त्रिंशतम्) वा तीस को (अस्वापयत्) सुलावे, वही जीतनेवाला होवे ॥२१॥
भावार्थभाषाः - जो सेनापति आदि बुद्धि से शत्रुओं का नाश करें, वे सदा ही सुखी होवें ॥२१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

य इन्द्रो मायया दासानां सेवकानां शत्रूणां हथैर्दभीतये सहस्रा त्रिंशतमस्वापयत् स एव विजयवान् भवेत् ॥२१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्वापयत्) स्वापयेत् (दभीतये) हिंसनाय (सहस्रा) असंख्यानि (त्रिंशतम्) एतत्संख्यातम् (हथैः) हननैः (दासानाम्) सेवकानाम् (इन्द्रः) राजा (मायया) प्रज्ञया ॥२१॥
भावार्थभाषाः - ये सेनापत्यादयो बुद्ध्या शत्रून् हन्युस्ते सदैव सुखिनः स्युः ॥२१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सेनापती इत्यादी बुद्धीने शत्रूंचा नाश करतात ते सदैव सुखी होतात. ॥ २१ ॥