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अनु॒ द्वा ज॑हि॒ता न॑यो॒ऽन्धं श्रो॒णं च॑ वृत्रहन्। न तत्ते॑ सु॒म्नमष्ट॑वे ॥१९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

anu dvā jahitā nayo ndhaṁ śroṇaṁ ca vṛtrahan | na tat te sumnam aṣṭave ||

पद पाठ

अनु॑। द्वा। ज॒हि॒ता। न॒यः॒। अ॒न्धम्। श्रो॒णम्। च॒। वृ॒त्र॒ऽह॒न्। न। तत्। ते॒। सु॒म्नम्। अष्ट॑वे ॥१९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:19 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृत्रहन्) शत्रुओं के नाश करनेवाले ! जो (नयः) नायक अर्थात् अग्रणी होते हुए आप (अन्धम्) नेत्रों के विज्ञान से विकल (श्रोणं, च) और खञ्ज अर्थात् पङ्गु (द्वा) दोनों (जहिता) छोड़नेवालों का (अनु) पश्चात् पालन करें तो (ते) आपके (तत्) उस (सुम्नम्) सुख को (अष्टवे) व्याप्त होने को कोई भी शत्रु (न) नहीं समर्थ होवें ॥१९॥
भावार्थभाषाः - जो राजा अनाथ अन्धादिकों का निरन्तर पालन करे, उसका राज्य और सुख कभी नहीं नष्ट होवे ॥१९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे वृत्रहन् ! यदि नयः संस्त्वमन्धं श्रोणञ्च द्वा जहिताऽनु पालयेस्तर्हि ते तत्सुम्नमष्टवे कश्चिदपि शत्रुर्न शक्नुयात् ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अनु) (द्वा) द्वौ (जहिता) जहितौ त्यक्तारौ (नयः) नायकः (अन्धम्) चक्षुर्विज्ञानविकलम् (श्रोणम्) खञ्जम् (च) (वृत्रहन्) शत्रुहन्तः (न) (तत्) (ते) तव (सुम्नम्) सुखम् (अष्टवे) व्याप्तुम् ॥१९॥
भावार्थभाषाः - यो राजानाथानन्धादीन् सततं पालयेत्तस्य राज्यं सुखञ्च न नश्येत् ॥१९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा, अनाथ व अंध इत्यादींचे निरंतर पालन करतो त्याचे राज्य व सुख कधी नष्ट होत नाही. ॥ १९ ॥