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उ॒त त्या स॒द्य आर्या॑ स॒रयो॑रिन्द्र पा॒रतः॑। अर्णा॑चि॒त्रर॑थावधीः ॥१८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tyā sadya āryā sarayor indra pārataḥ | arṇācitrarathāvadhīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। त्या। स॒द्यः। आर्या॑। स॒रयोः॑। इ॒न्द्र॒। पा॒रतः॑। अर्णा॑चि॒त्रर॑था। अ॒व॒धीः॒ ॥१८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:30» मन्त्र:18 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:18


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) राजन् आप (सद्यः) शीघ्र (त्या) उन दोनों (सरयोः) चलते हुओं के (पारतः) पार से वर्त्तमान (अर्णाचित्ररथा) पहुँचानेवाले आश्चर्य्यकारक रथों का (अवधीः) नाश करो (उत) और (आर्य्या) उत्तम गुण, कर्म्म और स्वभाववालों का पालन करो ॥१८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप निरन्तर दुष्टों का ताड़न और श्रेष्ठों का सत्कार करो ॥१८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! त्वं सद्यस्त्या सरयोः पारतो वर्त्तमानावर्णाचित्ररथावधीरुताप्यार्य्या पालयेः ॥१८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) (त्या) तौ (सद्यः) शीघ्रम् (आर्या) उत्तमगुणकर्म्मस्वभावौ (सरयोः) गच्छतोः (इन्द्र) (पारतः) पारात् (अर्णाचित्ररथा) अर्णौ प्रापकौ च तौ चित्ररथा आश्चर्य्यरथौ च तौ (अवधीः) हन्याः ॥१८॥
भावार्थभाषाः - हे राजँस्त्वं सततं दुष्टान् ताडय श्रेष्ठान् सत्कुरु ॥१८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा, तू निरंतर दुष्टांचे ताडन व श्रेष्ठांचा सत्कार कर. ॥ १८ ॥