उ॒त त्या स॒द्य आर्या॑ स॒रयो॑रिन्द्र पा॒रतः॑। अर्णा॑चि॒त्रर॑थावधीः ॥१८॥
uta tyā sadya āryā sarayor indra pārataḥ | arṇācitrarathāvadhīḥ ||
उ॒त। त्या। स॒द्यः। आर्या॑। स॒रयोः॑। इ॒न्द्र॒। पा॒रतः॑। अर्णा॑चि॒त्रर॑था। अ॒व॒धीः॒ ॥१८॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे इन्द्र ! त्वं सद्यस्त्या सरयोः पारतो वर्त्तमानावर्णाचित्ररथावधीरुताप्यार्य्या पालयेः ॥१८॥