वांछित मन्त्र चुनें

ए॒भिर्भ॑व सु॒मना॑ अग्ने अ॒र्कैरि॒मान्त्स्पृ॑श॒ मन्म॑भिः शूर॒ वाजा॑न्। उ॒त ब्रह्मा॑ण्यङ्गिरो जुषस्व॒ सं ते॑ श॒स्तिर्दे॒ववा॑ता जरेत ॥१५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ebhir bhava sumanā agne arkair imān spṛśa manmabhiḥ śūra vājān | uta brahmāṇy aṅgiro juṣasva saṁ te śastir devavātā jareta ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒भिः। भ॒व॒। सु॒ऽमनाः॑। अ॒ग्ने॒। अ॒र्कैः। इ॒मान्। स्पृ॒श॒। मन्म॑ऽभिः। शू॒रः॒। वाजा॑न्। उ॒त। ब्रह्मा॑णि। अ॒ङ्गि॒रः॒। जु॒ष॒स्व॒। सम्। ते॒। श॒स्तिः। दे॒वऽवा॑ता। ज॒रे॒त॒॥१५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:3» मन्त्र:15 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:22» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:15


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अङ्गिरः) प्राण के सदृश वर्त्तमान (शूर) वीर (अग्ने) विद्वन् राजन् ! आप (एभिः) इन धार्मिक रक्षक और विद्यावान् (अर्कैः) सत्कार करने योग्य (मन्मभिः) विद्वानों के साथ (सुमनाः) उत्तम मन युक्त (भव) हूजिये और (इमान्) इन (वाजान्) प्राप्त होने योग्य उत्तम गुण, कर्म और स्वभाववालों को (स्पृश) ग्रहण करिये (उत) और (ब्रह्माणि) बड़े-बड़े धनों का (सम् जुषस्व) अच्छे प्रकार सेवन करिये जिससे कि (ते) आपकी (देववाता) विद्वानों से की गई (शस्तिः) प्रशंसा (जरेत) प्रशंसित हो अर्थात् अधिक विख्यात हो ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप यथार्थवक्ता विद्वानों का सङ्ग निरन्तर करिये और उनके उपदेश से न्यायपूर्वक राज्य का पालन करके प्रशंसित हूजिये ॥१५॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अङ्गिरः शूराग्ने राजंस्त्वमेभिरर्कैर्मन्मभिस्सह सुमना भवेमान् वाजान् स्पृश उत ब्रह्माणि सञ्जुषस्व यतस्ते देववाता शस्तिर्जरेत ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एभिः) धार्मिकै रक्षकैर्विद्वद्भिः सह (भव) (सुमनाः) शोभनं मनो यस्य सः (अग्ने) विद्वन् (अर्कैः) सत्कर्त्तव्यैः (इमान्) (स्पृश) गृहाण (मन्मभिः) विद्वद्भिः (शूरः) (वाजान्) प्राप्तव्याञ्छुभगुणकर्मस्वभावान् (उत) (ब्रह्माणि) महान्ति धनानि (अङ्गिरः) प्राण इव वर्त्तमान (जुषस्व) सेवस्व (सम्) (ते) तव (शस्तिः) प्रशंसा (देववाता) देवैर्विद्वद्भिः कृता (जरेत) प्रशंसिता भवेत् ॥१५॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! भवानाप्तानां विदुषां सङ्गं सततं कुरु तदुपदेशेन न्यायेन राज्यं पालयित्वा प्रशंसितो भवतु ॥१५॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! तू निरंतर आप्त विद्वानांचा संग निरंतर कर व त्यांच्या उपदेशाने न्यायपूर्वक राज्याचे पालन करून प्रशंसित हो. ॥ १५ ॥