मा कस्य॑ य॒क्षं सद॒मिद्धु॒रो गा॒ मा वे॒शस्य॑ प्रमिन॒तो मापेः। मा भ्रातु॑रग्ने॒ अनृ॑जोर्ऋ॒णं वे॒र्मा सख्यु॒र्दक्षं॑ रि॒पोर्भु॑जेम ॥१३॥
mā kasya yakṣaṁ sadam id dhuro gā mā veśasya praminato māpeḥ | mā bhrātur agne anṛjor ṛṇaṁ ver mā sakhyur dakṣaṁ ripor bhujema ||
मा। कस्य॑। य॒क्षम्। सद॑म्। इत्। हु॒रः। गाः॒। मा। वे॒शस्य॑। प्र॒ऽमि॒न॒तः। मा। आ॒पेः। मा। भ्रातुः॑। अ॒ग्ने॒। अनृ॑जोः। ऋ॒णम्। वेः॒। मा। सख्युः॑। दक्ष॑म्। रि॒पोः। भु॒जे॒म॒॥१३॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब बुद्धिमानों के बुद्धिमत्ता विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
बुद्धिमत्ताविषयमाह ॥
हे अग्ने ! त्वमनृजोः कस्यचित्प्रमिनतो वेशस्य हुरस्सदं मा गाः। अनृजोरापेर्य्यक्षं सदं मा गा अनृजोर्भ्रातुर्यक्षं सदं मा गाः। अनृजोः सख्युर्दक्षं मा वेरवृजो रिपोर्ऋणं मा वेः। येन वयं सुखमिद्भुजेम ॥१३॥