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आ नः॑ स्तु॒त उप॒ वाजे॑भिरू॒ती इन्द्र॑ या॒हि हरि॑भिर्मन्दसा॒नः। ति॒रश्चि॑द॒र्यः सव॑ना पु॒रूण्या॑ङ्गू॒षेभि॑र्गृणा॒नः स॒त्यरा॑धाः ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā naḥ stuta upa vājebhir ūtī indra yāhi haribhir mandasānaḥ | tiraś cid aryaḥ savanā purūṇy āṅgūṣebhir gṛṇānaḥ satyarādhāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। स्तु॒तः। उप॑। वाजे॑भिः। ऊ॒ती। इन्द्र॑। या॒हि। हरि॑ऽभिः। म॒न्द॒सा॒नः। ति॒रः। चि॒त्। अ॒र्यः। सव॑ना। पु॒रूणि॑। आ॒ङ्गू॒षेभिः॑। गृ॒णा॒नः। स॒त्यऽरा॑धाः ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:29» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:18» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पाँच ऋचावाले उनतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) राजन् (स्तुतः) प्रशंसित (मन्दसानः) आनन्द करते और (आङ्गूषेभिः) स्तुति करनेवालों से (गृणानः) स्तुति को प्राप्त होते हुए (सत्यराधाः) सत्य से धनयुक्त (अर्य्यः) स्वामी आप (पुरूणि) बहुत (सवना) ऐश्वर्य्यों को प्राप्त (तिरः) तिरछे (चित्) भी होते हुए (ऊती) रक्षण आदि के लिये (वाजेभिः) अन्न, सेना आदि के और (हरिभिः) उत्तम वीर पुरुषों के साथ (नः) हम लोगों को (उप, आ, याहि) प्राप्त हूजिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो यहाँ प्रशंसित गुण, कर्म्म और स्वभावयुक्त, आपत्काल का निवारण करनेवाला, प्रजा के रक्षण में तत्पर, श्रेष्ठ सहायवाली उत्तम सेना से युक्त, न्यायकारी, धर्म्म से इकट्ठे किये हुए धनवाला और अभिमान से रहित होवे, उसी को राजा मानो ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्र ! स्तुतो मन्दसान आङ्गूषेभिर्गृणानः सत्यराधा अर्य्यस्त्वं पुरूणि सवना प्राप्तः तिरश्चित्सन्नूती वाजेभिर्हरिभिश्च सह न उपायाहि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (नः) अस्मान् (स्तुतः) प्रशंसितः (उप) (वाजेभिः) अन्नसेनादिभिः सह (ऊती) ऊत्यै रक्षणाद्याय (इन्द्र) राजन् (याहि) प्राप्नुहि (हरिभिः) उत्तमैर्वीरपुरुषैः (मन्दसानः) आनन्दन् (तिरः) तिर्यक् (चित्) अपि (अर्य्यः) स्वामीश्वरः (सवना) ऐश्वर्याणि (पुरूणि) बहूनि (आङ्गूषेभिः) स्तावकैः (गृणानः) स्तूयमानः (सत्यराधाः) सत्येन राधो धनं यस्य सः ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! योऽत्र प्रशंसितगुणकर्मस्वभाव आपत्कालनिवारकः प्रजारक्षणतत्परः सुसहायोत्तमसेनो न्यायकारी धर्म्योपार्जितधनो निरभिमानो भवेत्तमेव राजानं मन्यध्वम् ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राजा व प्रजा यांच्या गुणांचे वर्णन केल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो प्रशंसित गुणकर्म स्वभावयुक्त, आपत्कालाचा निवारक, प्रजेच्या रक्षणात तत्पर, साह्य करणारा, उत्तम सेनेने युक्त, न्यायकारी, धर्माने उपार्जित केलेले धन ज्याच्या जवळ असून जर तो निरभिमानी असेल तर त्यालाच राजा माना. ॥ १ ॥