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को अ॑स्य वी॒रः स॑ध॒माद॑माप॒ समा॑नंश सुम॒तिभिः॒ को अ॑स्य। कद॑स्य चि॒त्रं चि॑किते॒ कदू॒ती वृ॒धे भु॑वच्छशमा॒नस्य॒ यज्योः॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ko asya vīraḥ sadhamādam āpa sam ānaṁśa sumatibhiḥ ko asya | kad asya citraṁ cikite kad ūtī vṛdhe bhuvac chaśamānasya yajyoḥ ||

पद पाठ

कः। अ॒स्य॒। वी॒रः। स॒ध॒ऽमाद॑म्। आ॒प॒। सम्। आ॒नं॒श॒। सु॒म॒तिऽभिः॑। कः। अ॒स्य॒। कत्। अ॒स्य॒। चि॒त्रम्। चि॒कि॒ते॒। कत्। ऊ॒ती। वृ॒धे। भु॒व॒त्। श॒श॒मा॒नस्य॑। यज्योः॑ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:23» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:9» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (कः) कौन (वीरः) विद्या से प्राप्त शरीर और आत्मबलयुक्त (अस्य) इस अध्यापक वा राजा के (सधमादम्) साथ आनन्द को (आप) प्राप्त होवे (कः) कौन वीर (अस्य) इसके (सुमतिभिः) श्रेष्ठ विद्वानों के साथ (चित्रम्) अद्भुत विज्ञान को (चिकिते) जानता है (कत्) कब (अस्य) इसको विद्या को (सम्, आनंश) प्राप्त होता है और कौन वीर (ऊती) रक्षण आदि से (शशमानस्य) प्रशंसित (यज्योः) संगम करने योग्य सत्य व्यवहार की (वृधे) वृद्धि के लिये (कत्) कब (भुवत्) होवे ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् वा राजन् ! कौन किसके साथ पढ़े? कौन किसके साथ न्याय करे? वा युद्ध करे? कौन इनमें श्रेष्ठ? इस प्रश्न का जो प्रशंसित कर्म्मों के अनुष्ठान और वृद्धि करनेवाले होवें, यह उत्तर है ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! को वीरोऽस्य सधमादमाप को वीरोऽस्य सुमतिभिश्चित्रं चिकिते कदस्य विद्यां समानंश को वीर ऊती शशमानस्य यज्योर्वृधे कद्भुवत् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कः) (अस्य) अध्यापकस्य राज्ञो वा (वीरः) विद्यया प्राप्तशरीरात्मबलः (सधमादम्) सहाऽऽनन्दम् (आप) आप्नुयात् (सम्) (आनंश) प्राप्नोति (सुमतिभिः) श्रेष्ठैर्विद्वद्भिस्सह (कः) (अस्य) (कत्) कदा (अस्य) (चित्रम्) अद्भुतं विज्ञानम् (चिकिते) जानाति (कत्) (ऊती) ऊत्या रक्षणाद्येन (वृधे) वृद्धये (भुवत्) भवेत् (शशमानस्य) प्रशंसितस्य (यज्योः) सङ्गन्तुमर्हस्य सत्यव्यवहारस्य ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् राजन् वा ! कः केन सह पठेत् कः केन सह न्यायं कुर्य्याद् युद्ध्येद्वा क एषां वरिष्ठ इति प्रश्नस्य ये प्रशंसितकर्म्मणामनुष्ठातारो वर्धकाः स्युरित्युत्तरम् ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वाना किंवा राजा ! कुणी कुणाबरोबर शिकावे, कुणी कुणाबरोबर न्याय करावा किंवा युद्ध करावे, कोण यामध्ये श्रेष्ठ आहे या प्रश्नाचे उत्तर असे की; जो प्रशंसित कर्माचे अनुष्ठान व वृद्धी करतो तो श्रेष्ठ आहे. ॥ २ ॥