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आ न॒ इन्द्रो॒ हरि॑भिर्या॒त्वच्छा॑र्वाची॒नोऽव॑से॒ राध॑से च। तिष्ठा॑ति व॒ज्री म॒घवा॑ विर॒प्शीमं य॒ज्ञमनु॑ नो॒ वाज॑सातौ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā na indro haribhir yātv acchārvācīno vase rādhase ca | tiṣṭhāti vajrī maghavā virapśīmaṁ yajñam anu no vājasātau ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। नः॒। इन्द्रः॑। हरि॑ऽभिः। या॒तु॒। अच्छ॑। अ॒र्वा॒ची॒नः। अव॑से। राध॑से। च॒। तिष्ठा॑ति। व॒ज्री। म॒घऽवा॑। वि॒ऽर॒प्शी। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। अनु॑। नः॒। वाज॑ऽसातौ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:20» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (अर्वाचीनः) इस काल में उत्पन्न (मघवा) न्याय से इकट्ठे किये हुए धन के होने से आदर करने योग्य (वज्री) शस्त्रों और अस्त्रों का जाननेवाले (विरप्शी) बड़ा (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाला राजा (हरिभिः) श्रेष्ठ मनुष्यों के साथ (नः) हम लोगों को वा हम लोगों के (अवसे) अन्न आदि के (च) और (राधसे) धन के लिये (अच्छ) उत्तम प्रकार (आ, यातु) प्राप्त हो (इमम्) इस (यज्ञम्) प्रजापालनरूप यज्ञ का (नः) हम लोगों के (वाजसातौ) सङ्ग्राम में (अनु, तिष्ठाति) अनुष्ठान करे, उसी को राजा मानो ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो राजा उत्तम सभा के जनों से प्रजा के सुख के लिये अन्न और धन बहुत करके सङ्ग्राम में जीतनेवाला न्यायकारी होवे, वही राजा होने को योग्य होवे ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! योऽर्वाचीनो मघवा वज्री विरप्शीन्द्रो हरिभिस्सह नोऽवसे राधसे चाऽच्छाऽऽयात्विमं यज्ञन्नो वाजसातौ चानुतिष्ठाति तमेव राजानं स्वीकुरुत ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (नः) अस्मानस्माकं वा (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् राजा (हरिभिः) प्रशस्तैर्नरैस्सह (यातु) आयातु प्राप्नोतु (अच्छ) (अर्वाचीनः) इदानीन्तनः (अवसे) अन्नाद्याय। अव इत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं०२.७) (राधसे) धनाय (च) (तिष्ठाति) तिष्ठेत् (वज्री) शस्त्राऽस्त्रवित् (मघवा) न्यायार्जितधनत्वात् पूजनीयः (विरप्शी) महान् (इमम्) (यज्ञम्) प्रजापालनाख्यम् (अनु) (नः) अस्माकम् (वाजसातौ) संग्रामे ॥२॥
भावार्थभाषाः - यो राजोत्तमैस्सभ्यैः प्रजासुखायाऽन्नधने बहुले कृत्वा संग्रामे विजयी न्यायकारी भवेत् स खलु राजा भवितुमर्हेत् ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा प्रजेच्या सुखासाठी सभेद्वारे अन्न व धनाचा संग्रह करणारा, युद्धात जिंकणारा, न्यायी असेल तोच राजा होण्यायोग्य आहे. ॥ २ ॥