वांछित मन्त्र चुनें

इ॒ह त्वं सू॑नो सहसो नो अ॒द्य जा॒तो जा॒ताँ उ॒भयाँ॑ अ॒न्तर॑ग्ने। दू॒त ई॑यसे युयुजा॒न ऋ॑ष्व ऋजुमु॒ष्कान्वृष॑णः शु॒क्रांश्च॑ ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iha tvaṁ sūno sahaso no adya jāto jātām̐ ubhayām̐ antar agne | dūta īyase yuyujāna ṛṣva ṛjumuṣkān vṛṣaṇaḥ śukrām̐ś ca ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒ह। त्वम्। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। नः॒। अ॒द्य। जा॒तः। जा॒तान्। उ॒भया॑न्। अ॒न्तः। अ॒ग्ने॒। दू॒तः। ई॒य॒से॒। यु॒यु॒जा॒नः। ऋ॒ष्व॒। ऋ॒जु॒ऽमु॒ष्कान्। वृष॑णः। शु॒क्रान्। च॒॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:2» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान (ऋष्व) विज्ञान को प्राप्त (नः) हम लोगों के (सूनो) पवित्रपुत्र (त्वम्) आप (इह) इस संसार में (अद्य) आज (सहसः) बल से (जातः) विद्या के जन्म में प्रकट हुए (ऋजुमुष्कान्) सरलता से चुरानेवाले (वृषणः) बलयुक्त जनों और (शुक्रान्) शुद्धि करनेवालों का (च) भी (युयुजानः) समाधान करते हुए (दूतः) दुष्टों के सन्ताप देनेवाले के तुल्य (जातान्) विद्वान् और (उभयान्) पढ़ाने और पढ़नेवालों को (अन्तः) मध्य में (ईयसे) प्राप्त होते हो, इससे कल्याण करनेवाले हो ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे मध्य में अग्नि सब का पालन और नाश करनेवाला है, वैसे ही इस संसार में विद्वान् पुत्र तो पालन करनेवाला और मूर्ख विनाश करनेवाला होता है। तिससे दीर्घ ब्रह्मचर्य से अपनी सन्तानों को उत्तम करके कृतकृत्यता अर्थात् जन्मसाफल्य जानो ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! ऋष्व नः सूनो त्वमिहाद्य सहसो जात ऋजुमुष्कान् वृषणः शुक्रांश्च युयुजानो दूत इव जातानुभयानन्तरीयसे तस्माच्छ्रेयस्करोषि ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इह) अस्मिन् संसारे (त्वम्) (सूनो) पवित्रपुत्र (सहसः) बलात् (नः) अस्माकम् (अद्य) (जातः) विद्याजन्मनि प्रादुर्भूतः (जातान्) विदुषः (उभयान्) अध्यापकान् अध्येतॄंश्च (अन्तः) मध्ये (अग्ने) अग्निरिव वर्त्तमान (दूतः) दुष्टानां परितापकः (ईयसे) प्राप्नोषि (युयुजानः) समादधन् (ऋष्व) प्राप्तविज्ञान (ऋजुमुष्कान्) य ऋजुना मुष्णन्ति तान् (वृषणः) बलिष्ठान् (शुक्रान्) शुद्धिकरान् (च) ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथान्तरग्निः सर्वेषां पालको विनाशकश्चास्ति तथैवेह विद्वान् पुत्रः पालको मूर्खश्च विनाशको भवति तस्माद्दीर्घेण ब्रह्मचर्येण स्वसन्तानानुत्तमान् कृत्वा कृतकृत्यतां विजानीत ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जसा अग्नी सर्वांचे पालन किंवा नाश करणारा असतो, तसेच या जगात विद्वान पुत्र पालनकर्ता व मूर्ख नाशकर्ता असतो. त्यामुळे दीर्घ ब्रह्मचर्याने आपल्या संतानांना उत्तम करून कृतकृत्य होता येते हे जाणावे ॥ २ ॥