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चित्ति॒मचि॑त्तिं चिनव॒द्वि वि॒द्वान्पृ॒ष्ठेव॑ वी॒ता वृ॑जि॒ना च॒ मर्ता॑न्। रा॒ये च॑ नः स्वप॒त्याय॑ देव॒ दितिं॑ च॒ रास्वादि॑तिमुरुष्य ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

cittim acittiṁ cinavad vi vidvān pṛṣṭheva vītā vṛjinā ca martān | rāye ca naḥ svapatyāya deva ditiṁ ca rāsvāditim uruṣya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

चित्तिम्। अचि॑त्ति॑म्। चि॒न॒व॒त्। वि। वि॒द्वान्। पृ॒ष्ठाऽइ॑व। वी॒ता। वृ॒जि॒ना। च॒। मर्ता॑न्। रा॒ये। च॒। नः॒। सु॒ऽअ॒प॒त्याय॑। दे॒व॒। दिति॑म्। च॒। रास्व॑। अदि॑तिम्। उ॒रु॒ष्य॒॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:2» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:18» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) विद्वान् पुरुष ! जो (वि) विशेष करके (विद्वान्) विद्यायुक्त पुरुष (पृष्ठेव) पीठों के सदृश (वीता) प्राप्त (वृजिना) पराक्रमों को (मर्त्तान्) मनुष्यों को (च) भी (नः) हम लोगों के (स्वपत्याय) उत्तम सन्तान जिससे उस (राये) धन के लिये (च) और (चित्तिम्) किया संग्रह जिसमें उस क्रिया और (अचित्तिम्) जिसमें संग्रह नहीं किया उसका (चिनवत्) संग्रह करे, उसके लिये (दितिम्) खण्डित क्रिया को (रास्व) दीजिये (च) और (अदितिम्) अखण्डित क्रिया का (उरुष्य) सेवन कीजिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे ऊँट आदि पीठों से भार को ले चलते हैं, वैसे ही बलवान् पुरुष सब व्यवहार के भार को धारण करते हैं और व्यवहार में जिसका खण्डन और जिसका मण्डन करने योग्य होवे, वह उसका वैसा ही करना चाहिये ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे देव ! यो वि विद्वान् पृष्ठेव वीता वृजिना मर्त्तांश्च नः स्वपत्याय राये च चित्तिमचित्तिं चिनवत्तस्मै दितिं रास्व चाऽदितिमुरुष्य ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (चित्तिम्) कृतचयनां क्रियाम् (अचित्तिम्) अकृतचयनाम् (चिनवत्) चिनुयात् (वि) (विद्वान्) (पृष्ठेव) पृष्ठानीव (वीता) वीतानि प्राप्तानि (वृजिना) वृजिनानि बलानि (च) (मर्त्तान्) मनुष्यान् (राये) धनाय (च) (नः) अस्माकम् (स्वपत्याय) शोभनान्यपत्यानि यस्मात्तस्मै (देव) विद्वन् (दितिम्) खण्डितां क्रियाम् (च) (रास्व) देहि (अदितिम्) नाशरहिताम् (उरुष्य) सेवस्व ॥११॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथोष्ट्रादयः पृष्ठैर्भारं वहन्ति तथैव बलिष्ठा जनाः सर्वं व्यवहारभारं वहन्ति व्यवहारे यस्य खण्डनं यस्य च मण्डनं कर्त्तव्यं स्यात्तत्तस्य तथैव कार्य्यम् ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे उंट पाठीवर भार घेऊन चालतात. तसेच बलवान पुरुष सर्व व्यवहाराचा भार वहन करतात व्यवहारात ज्याचे खंडन व ज्याचे मंडन करण्यायोग्य आहे ते करावे. ॥ ११ ॥