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प्र ते॒ पूर्वा॑णि॒ कर॑णानि विप्रावि॒द्वाँ आ॑ह वि॒दुषे॒ करां॑सि। यथा॑यथा॒ वृष्ण्या॑नि॒ स्वगू॒र्तापां॑सि राज॒न्नर्यावि॑वेषीः ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra te pūrvāṇi karaṇāni viprāvidvām̐ āha viduṣe karāṁsi | yathā-yathā vṛṣṇyāni svagūrtāpāṁsi rājan naryāviveṣīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। ते॒। पूर्वा॑णि। कर॑णानि। वि॒प्र॒। आ॒ऽवि॒द्वान्। आ॒ह॒। वि॒दुषे॑। करां॑सि। यथा॑ऽयथा। वृष्ण्या॑नि। स्वऽगू॑र्ता। अपां॑सि। रा॒ज॒न्। नर्या॑। अवि॑वेषीः ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:19» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:2» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वान् के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (विप्र) बुद्धिमान् (राजन्) राजन् ! (विदुषे) विद्वान् ! (ते) आपके लिये (यथायथा) जैसे-जैसे (पूर्वाणि) अनादि काल से सिद्ध (करणानि) जिनसे करें वह कार्य्यसाधन (करांसि) और करने योग्य कर्म्म (वृष्ण्यानि) बलकारक (स्वगूर्त्ता) अपने से प्राप्त (नर्य्या) मनुष्यों में हित करनेवाले (अपांसि) कर्म्मों को (आविद्वान्) सब प्रकार से समस्त जानता हुआ (प्र, आह) अच्छे कहता है, उनको आप (अविवेषीः) विशेष करके प्राप्त हूजिये ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् राजन् ! आप सदा श्रेष्ठ पुरुषों की शिक्षा में प्रवृत्त हूजिये और जो-जो आपके लिये वे उपदेश देवें, वैसे ही करिये ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्गुणानाह ॥

अन्वय:

हे विप्र राजन् विदुषे ! ते यथायथा पूर्वाणि करणानि करांसि वृष्ण्यानि स्वगूर्त्ता नर्य्याऽपांस्याऽऽविद्वान् प्राह तानि त्वमविवेषीः ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (ते) तव (पूर्वाणि) सनातनानि (करणानि) क्रियन्ते यैस्तानि (विप्र) मेधाविन् (आविद्वान्) यः समन्तात् सर्वं वेत्ति (आह) ब्रूते (विदुषे) (करांसि) करणीयानि कर्म्माणि (यथायथा) (वृष्ण्यानि) बलकराणि (स्वगूर्त्ता) स्वेन प्राप्तानि (अपांसि) कर्म्माणि (राजन्) (नर्य्या) नृषु हितानि (अविवेषीः) विशेषेण प्राप्नुयाः ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! राजँस्त्वं सदाप्तशासने प्रवर्त्तस्व यद्यत्ते त उपदिशेयुस्तथैव कुरुष्व ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वान राजा ! तू सदैव श्रेष्ठ पुरुषांच्या व्यवस्थापनात राहा व जो जो तुला उपदेश मिळेल तसे वाग. ॥ १० ॥