वांछित मन्त्र चुनें

उ॒त मा॒ता म॑हि॒षमन्व॑वेनद॒मी त्वा॑ जहति पुत्र दे॒वाः। अथा॑ब्रवीद्वृ॒त्रमिन्द्रो॑ हनि॒ष्यन्त्सखे॑ विष्णो वित॒रं वि क्र॑मस्व ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta mātā mahiṣam anv avenad amī tvā jahati putra devāḥ | athābravīd vṛtram indro haniṣyan sakhe viṣṇo vitaraṁ vi kramasva ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। मा॒ता। म॒हि॒षम्। अनु॑। अ॒वे॒न॒त्। अ॒मी इति॑। त्वा॒। ज॒ह॒ति॒।। पु॒त्र॒। दे॒वाः। अथ॑। अ॒ब्र॒वी॒त्। वृ॒त्रम्। इन्द्रः॑। ह॒नि॒ष्यन्। सखे॑। वि॒ष्णो॒ इति॑। वि॒ऽत॒रम्। वि। क्र॒म॒स्व॒ ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:18» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:6 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:11


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सन्तान शिक्षा से विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सखे) मित्र (विष्णो) सम्पूर्ण विद्याओं में व्यापक (पुत्र) दुःख से रक्षा करनेवाले ! आप (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्यवान् सूर्य्य के सदृश पालनकर्त्ता (वृत्रम्) मेघ के समान अविद्या का (हनिष्यन्) नाश करनेवाले हुए (वितरम्) विविध प्रकार तरने योग्य को (वि, क्रमस्व) पुरुषार्थी हूजिये (अथ) इसके अनन्तर (माता) माता (त्वा) आपको (महिषम्) बड़ा (अवेनत्) माँगती है, जो इस प्रकार (उत) भी जैसे पिता (अब्रवीत्) कहता है, वैसे नहीं करे तो (अमी) यह (देवाः) विद्वान् लोग आपका (अनु, जहति) त्याग करते हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सन्तानों की योग्यता है कि जैसे विद्वान् माता पिता ब्रह्मचर्य आदि से विद्या का ग्रहण और शरीर के सुख के वर्धन का उपदेश करें, वैसे ही करना चाहिये और जो उत्तम शीलयुक्त पुत्र होते हैं, उन्हीं पर यथार्थवक्ता अध्यापक लोग कृपा करते और दुर्व्यसनियों का त्याग करते हैं ॥११॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सन्तानशिक्षणेन विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सखे विष्णो पुत्र ! त्वमिन्द्रो वृत्रमिवाऽविद्यां हनिष्यन् वितरं वि क्रमस्वाथ माता त्वा महिषमवेनदेवमुतापि यथा पिताऽब्रवीत्तथा न कुर्य्याश्चेत्तर्ह्यमी देवास्त्वाऽनुजहति ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) (माता) जननी (महिषम्) महान्तम् (अनु) (अवेनत्) याचते (अमी) (त्वा) त्वाम् (जहति) (पुत्र) दुःखात्त्रातः (देवाः) विद्वांसः (अथ) (अब्रवीत्) ब्रूते (वृत्रम्) मेघमिवाऽविद्याम् (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान्त्सूर्य्य इव पिता (हनिष्यन्) हननं करिष्यन् (सखे) मित्र (विष्णो) सकलविद्याव्यापिन् (वितरम्) विविधप्रकारेण तरितुं योग्यम् (वि) (क्रमस्व) पुरुषार्थी भव ॥११॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सन्तानानां योग्यतास्ति यथा विद्वांसौ मातापितरौ ब्रह्मचर्य्यादिना विद्याग्रहणं शरीरसुखवर्धनमुपदिशेतां तथैवाऽनुष्ठेयं यानि सुशीलान्यपत्यानि भवन्ति तान्येवाऽऽप्ताऽध्यापका अनुगृह्णन्ति दुर्व्यसनानि त्यजन्ति ॥११॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वान माता-पिता ब्रह्मचर्याचे पालन करून विद्येचे ग्रहण व शरीराच्या सुखाचा, वर्धनाचा उपदेश करतात तसे संतानांनी वागावे. जे उत्तम शीलयुक्त पुत्र असतात त्यांच्यावरच विद्वान, अध्यापक लोक कृपा करतात व दुर्व्यसनी लोकांचा त्याग करतात. ॥ ११ ॥