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त्वमध॑ प्रथ॒मं जाय॑मा॒नोऽमे॒ विश्वा॑ अधिथा इन्द्र कृ॒ष्टीः। त्वं प्रति॑ प्र॒वत॑ आ॒शया॑न॒महिं॒ वज्रे॑ण मघव॒न्वि वृ॑श्चः ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvam adha prathamaṁ jāyamāno me viśvā adhithā indra kṛṣṭīḥ | tvam prati pravata āśayānam ahiṁ vajreṇa maghavan vi vṛścaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। अध॑। प्र॒थ॒मम्। जाय॑मानः। अमे॑। विश्वाः॑। अ॒धि॒थाः॒। इ॒न्द्र॒। कृ॒ष्टीः। त्वम्। प्रति॑। प्र॒ऽवतः॑। आ॒ऽशया॑नम्। अहि॑म्। वज्रे॑ण। म॒घ॒ऽव॒न्। वि। वृ॒श्चः॒ ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:17» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:22» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजा के प्रति प्रजापालन प्रकार को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) बहुत धन से युक्त (इन्द्र) दुष्ट पुरुषों के नाश करनेहारे राजन् ! (अमे) गृह में (जायमानः) उत्पन्न होनेवाले (त्वम्) आप (विश्वाः) सम्पूर्ण (कृष्टीः) मनुष्य आदि प्रजाओं को (प्रथमम्) पहिले (अधिथाः) धारण करो (अध) इसके अनन्तर (त्वम्) आप जैसे (प्रवतः) नीचले स्थलों के (प्रति) प्रति (आशयानम्) सब प्रकार सोते हुए के सदृश वर्त्तमान (अहिम्) मेघ को (वज्रेण) किरणों से सूर्य्य नाश करता है, वैसे ही दुष्ट पुरुषों का आप (वि, वृश्चः) नाश करो ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो पुरुष प्रथम से ब्रह्मचर्य्य, विद्या, विनय और सुशीलता से सब में उत्तम होता है और जो राज्यपालन और युद्ध करने को जानता है, उसी को राजा करके सुखी होओ ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजानं प्रति प्रजापालनप्रकारमाह ॥

अन्वय:

हे मघवन्निन्द्र राजन्नमे जायमानस्त्वं विश्वाः कृष्टीः प्रथममधिथाः, अध त्वं यथा प्रवतः प्रत्याशयानमहिं वज्रेण सूर्यो हन्ति तथैव दुष्टाँस्त्वं वि वृश्चः ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (अध) आनन्तर्य्ये (प्रथमम्) (जायमानः) उत्पद्यमानः (अमे) गृहे (विश्वाः) समग्राः (अधिथाः) धारयेथाः (इन्द्र) दुष्टानां विदारक (कृष्टीः) मनुष्याद्याः प्रजाः (त्वम्) (प्रति) (प्रवतः) निम्नदेशान् (आशयानम्) समन्ताच्छयानमिव वर्त्तमानम् (अहिम्) मेघम् (वज्रेण) किरणैः (मघवन्) बहुधनयुक्त (वि) (वृश्चः) छिन्धि ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यो हि प्रथमतो ब्रह्मचर्य्येण विद्यया विनयसुशीलाभ्यां सर्वोत्कृष्टो जायते यश्च राज्यपालनयुद्धकरणं विजानाति तमेव राजानं कृत्वा सुखिनो भवत ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जो पहिल्यापासून ब्रह्मचर्य, विद्या, विनय व सुशीलतेने सर्वात उत्तम असतो व जो राज्यपालन व युद्ध करणे जाणतो त्यालाच राजा करून सुखी व्हा. ॥ ७ ॥