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किय॑त्स्वि॒दिन्द्रो॒ अध्ये॑ति मा॒तुः किय॑त्पि॒तुर्ज॑नि॒तुर्यो ज॒जान॑। यो अ॑स्य॒ शुष्मं॑ मुहु॒कैरिय॑र्ति॒ वातो॒ न जू॒तः स्त॒नय॑द्भिर॒भ्रैः ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kiyat svid indro adhy eti mātuḥ kiyat pitur janitur yo jajāna | yo asya śuṣmam muhukair iyarti vāto na jūtaḥ stanayadbhir abhraiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

किय॑त्। स्वि॒त्। इन्द्रः॑। अधि॑। ए॒ति॒। मा॒तुः। किय॑त्। पि॒तुः। ज॒नि॒तुः। यः। ज॒जान॑। यः। अ॒स्य॒। शुष्म॑म्। मु॒हु॒कैः। इय॑र्ति। वातः॑। न। जू॒तः। स्त॒नय॑त्ऽभिः। अ॒भ्रैः ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:17» मन्त्र:12 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रजाजनों में किसकी राज्य की योग्यता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (मुहुकैः) बारंबार कार्य्य करनेवालों से (अस्य) इसके (शुष्मम्) बल को (स्तनयद्भिः) शब्द करते हुए (अभ्रैः) मेघों के साथ (जूतः) वेग को प्राप्त (वातः) वायु के (न) तुल्य विजय को (इयर्ति) प्राप्त होता है और (यः) जो (स्वित्) कोई (इन्द्रः) तेजस्वी (मातुः) माता का (कियत्) कितना और (जनितुः) उत्पन्न करनेवाले (पितुः) पिता का (कियत्) कितना उपकार (अधि, एति) स्मरण करता है, वही राजा (जजान) होता है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य माता और पिता का कितना उपकार है, ऐसा जानकर प्रत्युपकार करते हैं, वे मेघ और वायु से प्रेरित बिजुली के सदृश बल को प्राप्त होकर बारंबार शत्रुओं को जीतकर प्रकट यशवाले होते हैं ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रजाजनेषु कस्य राज्ययोग्यतेत्याह ॥

अन्वय:

यो मुहुकैरस्य शुष्मं स्तनयद्भिरभ्रैः सह जूतो वातो न विजयमियर्ति यः स्विदिन्द्रो मातुः कियज्जनितुः पितुः कियदध्येति स एव राजा जजान ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कियत्) (स्वित्) अपि (इन्द्रः) (अधि, एति) स्मरति (मातुः) (कियत्) (पितुः) (जनितुः) जनकस्य (यः) (जजान) जायते (यः) (अस्य) (शुष्मम्) बलम् (मुहुकैः) मुहुर्मुहुः कुर्वद्भिः (इयर्ति) गच्छति (वातः) वायुः (न) इव (जूतः) प्राप्तवेगः (स्तनयद्भिः) शब्दायमानैः (अभ्रैः) घनैः सह ॥१२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्या मातुः पितुः कियानुपकारोऽस्तीति विज्ञाय प्रत्युपकुर्वन्ति ते मेघवायुभ्यां प्रेरिता विद्युदिव बलं प्राप्य वारं वारं शत्रून् विजित्य प्रकटकीर्त्तयो भवन्ति ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थर् - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे माता व पिता यांचा अत्यंत उपकार आहे हे जाणून प्रत्युपकार करतात, ती मेघ व वायूने प्रेरित विद्युतप्रमाणे बल प्राप्त करून वारंवार शत्रूंना जिंकून प्रत्यक्ष यश प्राप्त करणारे असतात. ॥ १२ ॥