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समिन्द्रो॒ गा अ॑जय॒त्सं हिर॑ण्या॒ सम॑श्वि॒या म॒घवा॒ यो ह॑ पू॒र्वीः। ए॒भिर्नृभि॒र्नृत॑मो अस्य शा॒कै रा॒यो वि॑भ॒क्ता सं॑भ॒रश्च॒ वस्वः॑ ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sam indro gā ajayat saṁ hiraṇyā sam aśviyā maghavā yo ha pūrvīḥ | ebhir nṛbhir nṛtamo asya śākai rāyo vibhaktā sambharaś ca vasvaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्। इन्द्रः॑। गाः। अ॒ज॒य॒त्। सम्। हिर॑ण्या। सम्। अ॒श्वि॒या। म॒घऽवा॑। यः। ह॒। पू॒र्वीः। ए॒भिः। नृऽभिः॑। नृऽत॑मः। अ॒स्य॒। शा॒कैः। रा॒यः। विऽभ॒क्ता। स॒म्ऽभ॒रः। च॒। वस्वः॑ ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:17» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजा कैसे विजय और आनन्द को प्राप्त होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (मघवा) श्रेष्ठधनयुक्त (इन्द्रः) शत्रुओं का नाशकर्त्ता (एभिः) इन (नृभिः) नायकों के साथ (नृतमः) अतिशय नायक हुआ (गाः) भूमियों को (सम्) उत्तम प्रकार (अजयत्) जीते (अश्विया) घोड़े आदि से युक्त (हिरण्या) सुवर्ण आदि धनों को (सम्) उत्तम प्रकार जीते जो (ह) निश्चय से (पूर्वीः) प्राचीन प्रजाओं को (सम्) उत्तम प्रकार जीते और जो (अस्य) इस सेना की (शाकैः) शक्तियों से (रायः) धन का (विभक्ता) विभाग करनेवाला (वस्वः) धनों को (च) और (सम्भरः) इकट्ठा करनेवाला होवे, वही राज्य करने को योग्य होवे ॥११॥
भावार्थभाषाः - जो उत्तम सहाय और उत्तम धन सामग्रीयुक्त तथा शत्रुओं का जीतने और यथायोग्यों के लिये विभाग करके देनेवाला विद्वान् राजा होवे, वही विजय को प्राप्त होकर आनन्द करे ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजा कथं विजयमानन्दं च प्राप्नोतीत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो मघवेन्द्र एभिर्नृभिः सह नृतमः सन् गाः समजयदश्विया हिरण्या समजयद्यो ह पूर्वीः प्रजाः समजयत्। योऽस्य शाकै रायो विभक्ता वस्वश्च सम्भरो भवेत् स एव राज्यं कर्त्तुमर्हेत् ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सम्) सम्यक् (इन्द्रः) शत्रुविदारकः (गाः) भूमीः (अजयत्) जयेत् (सम्) (हिरण्या) सुवर्णादीनि धनानि (सम्) (अश्विया) अश्वादियुक्तानि (मघवा) पूजितधनः (यः) (ह) खलु (पूर्वीः) प्राचीनाः प्रजाः (एभिः) (नृभिः) नायकैः सह (नृतमः) अतिशयेन नेता (अस्य) सैन्यस्य (शाकैः) शक्तिभिः (रायः) धनस्य (विभक्ता) विभागकर्त्ता (सम्भरः) यः सम्भरति सः (च) (वस्वः) धनानि ॥११॥
भावार्थभाषाः - य उत्तमसहायः प्रशस्तधनसामग्री शत्रूणां जेता यथार्हेभ्यो विभज्य दाता विचक्षणो राजा भवेत् स एव विजयं प्राप्य मोदेत ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो उत्तम साह्य करणारा, उत्तम धन सामग्रीयुक्त शत्रूंना जिंकणारा, यथायोग्य विभाजन करणारा विद्वान राजा असेल तर तोच विजय प्राप्त करून आनंद भोगतो. ॥ ११ ॥