वांछित मन्त्र चुनें

अ॒पो यदद्रिं॑ पुरुहूत॒ दर्द॑रा॒विर्भु॑वत्स॒रमा॑ पू॒र्व्यं ते॑। स नो॑ ने॒ता वाज॒मा द॑र्षि॒ भूरिं॑ गो॒त्रा रु॒जन्नङ्गि॑रोभिर्गृणा॒नः ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apo yad adrim puruhūta dardar āvir bhuvat saramā pūrvyaṁ te | sa no netā vājam ā darṣi bhūriṁ gotrā rujann aṅgirobhir gṛṇānaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒पः। यत्। अद्रि॑म्। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। दर्दः॑। आ॒विः। भु॒व॒त्। स॒रमा॑। पू॒र्व्यम्। ते॒। सः। नः॒। ने॒ता। वाज॑म्। आ। द॒र्षि॒। भूरि॑म्। गो॒त्रा। रु॒जन्। अङ्गि॑रःऽभिः। गृ॒णा॒नः ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:16» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:18» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पुरुहूत) बहुतों से प्रशंसित ! जो (ते) आपकी (सरमा) सरलनीति (आविः) प्रकट (भुवत्) होवे उससे आप शत्रुओं का (दर्दः) नाश करो (यत्) जो (नः) हम लोगों का (नेता) नायक प्रकट होवे उसके साथ (पूर्व्यम्) पूर्व (वाजम्) वेग का (आ, दर्षि) नाश करते हो और जो आप (अङ्गिरोभिः) पवनों से सूर्य जैसे (अपः) जलों को वैसे (गृणानः) स्तुति करते हुए (गोत्रा) मेघों के अवयवों को और (भूरिम्) बहुत (अद्रिम्) मेघ को (रुजन्) छिन्न-भिन्न करते हुए वर्त्तमान हो (सः) वह आपका सेनापति होवे ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजन् ! जो शुद्धनीतिवाले मनुष्य प्रसिद्ध होवें, उनकी रक्षा करके न्याय से प्रजाओं का पालन करो ॥८॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे पुरुहूत ! या ते सरमाऽऽविर्भुवत्तया त्वं शत्रून् दर्दो यद्यो नो नेताऽऽविर्भुवत्तेन सह पूर्व्यं वाजमादर्षि यस्त्वमङ्गिरोभिस्सूर्योऽप इव गृणानो गोत्रा भूरिमद्रिं रुजन् वर्त्तसे, स ते सेनापतिर्भवेत् ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अपः) जलानि (यत्) यः (अद्रिम्) मेघम् (पुरुहूत) बहुभिः प्रशंसित (दर्दः) विदारय (आविः) प्राकट्ये (भुवत्) भवेत् (सरमा) या सरति सा सरला नीतिः (पूर्व्यम्) पूर्वम् (ते) तव (सः) (नः) अस्माकम् (नेता) (वाजम्) वेगम् (आ) (दर्षि) विदीर्णं करोषि (भूरिम्) विपुलम् (गोत्रा) गोत्राणि मेघस्याऽवयवान् (रुजन्) भग्नानि कुर्वन् (अङ्गिरोभिः) वायुभिः (गृणानः) स्तूयमानः ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजन् ! ये शुद्धनीतयो मनुष्याः प्रसिद्धाः स्युस्तान् रक्षित्वा न्यायेन प्रजाः पालय ॥८॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा! जी शुद्ध नीतीयुक्त माणसे प्रसिद्ध असतील तर त्यांचे रक्षण करून न्यायाने प्रजेचे पालन कर. ॥ ८ ॥