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ए॒वेदिन्द्रा॑य वृष॒भाय॒ वृष्णे॒ ब्रह्मा॑कर्म॒ भृग॑वो॒ न रथ॑म्। नू चि॒द्यथा॑ नः स॒ख्या वि॒योष॒दस॑न्न उ॒ग्रो॑ऽवि॒ता त॑नू॒पाः ॥२०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eved indrāya vṛṣabhāya vṛṣṇe brahmākarma bhṛgavo na ratham | nū cid yathā naḥ sakhyā viyoṣad asan na ugro vitā tanūpāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒व। इत्। इन्द्रा॑य। वृ॒ष॒भाय॑। वृष्णे॑। ब्रह्म॑। अ॒क॒र्म॒। भृग॑वः। न। रथ॑म्। नु। चि॒त्। यथा॑। नः॒। स॒ख्या। वि॒ऽयोष॑त्। अस॑त्। नः॒। उ॒ग्रः। अ॒वि॒ता। त॒नू॒ऽपाः ॥२०॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:16» मन्त्र:20 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:20» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:20


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मन्त्री आदि कर्मचारियों के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे राजा (नः) हमारे (सख्या) मित्र के साथ (वियोषत्) धारण करे (उग्रः) तेजस्वी (तनूपाः) शरीर का पालन करनेवाला हुआ (नः) हम लोगों का (नु) शीघ्र (अविता) रक्षक (असत्) होवे (इत्, एव) उसी (वृषभाय) बैल के सदृश बलिष्ठ (वृष्णे) वीर्यवान् (इन्द्राय) अत्यन्त ऐश्वर्य के देनेवाले के लिये (भृगवः) प्रकाशमान (रथम्) वाहन के (न) सदृश (ब्रह्म, चित्) बड़े भी धन को हम लोग (अकर्म) सिद्ध करें ॥२०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे शिल्पीजन विद्या के साथ पदार्थों के संयोग से विमान आदि की रचना करके धनवान् होकर मित्रों का सत्कार करते हैं, वैसे ही राजा से सत्कार किये गये हम लोग राजा से ऐश्वर्य की वृद्धि करके सब राजा आदिकों का सत्कार करें ॥२०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरमात्यादिकर्मचारिविषयमाह ॥

अन्वय:

यथा राजानः सख्या वियोषदुग्रस्तनूपाः सन्नोन्वविताऽसत्तस्मा इदेव वृषभाय वृष्ण इन्द्राय भृगवो रथं न ब्रह्म चिद्वयमकर्म ॥२०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एव) (इत्) अपि (इन्द्राय) परमैश्वर्य्यप्रदाय (वृषभाय) वृषभ इव बलिष्ठाय (वृष्णे) बलिष्ठाय (ब्रह्म) महद्धनम् (अकर्म) कुर्य्याम (भृगवः) देदीप्यमानाः शिल्पिनः (न) इव (रथम्) (नु) सद्यः (चित्) (यथा) (नः) अस्माकम् (सख्या) मित्रेण (वियोषत्) सन्दधीत (असत्) भवेत् (नः) अस्माकम् (उग्रः) तेजस्वी (अविता) रक्षकः (तनूपाः) शरीरपालकः ॥२०॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा शिल्पिनो विद्यया पदार्थसम्प्रयोगेण विमानादीनि निर्माय श्रीमन्तो भूत्वा मित्राण्यभ्यर्चन्ति तथैव राजसत्कृता वयं राज्ञैश्वर्य्यं वर्धयित्वा सर्वान् राजादीन् सत्कुर्याम ॥२०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे शिल्पी (कारागीर) विद्येने पदार्थांचा संयोग करून विमान इत्यादींची रचना करून धनवान बनून मित्रांचा सत्कार करतात, तसेच राजाकडून सत्कार झालेल्या आम्ही सर्वांनी ऐश्वर्याची वाढ करून राजा इत्यादींचा सत्कार करावा. ॥ २० ॥