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त्वं पिप्रुं॒ मृग॑यं शूशु॒वांस॑मृ॒जिश्व॑ने वैदथि॒नाय॑ रन्धीः। प॒ञ्चा॒शत्कृ॒ष्णा नि व॑पः स॒हस्रात्कं॒ न पुरो॑ जरि॒मा वि द॑र्दः ॥१३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvam piprum mṛgayaṁ śūśuvāṁsam ṛjiśvane vaidathināya randhīḥ | pañcāśat kṛṣṇā ni vapaḥ sahasrātkaṁ na puro jarimā vi dardaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। पिप्रु॑म्। मृ॒ग॑यम्। शू॒शु॒ऽवांस॑म्। ऋ॒जिश्व॑ने। वै॒द॒थि॒नाय॑। र॒न्धीः॒। प॒ञ्चा॒शत्। कृ॒ष्णा। नि। व॒पः॒। स॒हस्रा॑। अत्क॑म्। न। पुरः॑। ज॒रि॒मा। वि। द॒र्द॒रिति॑ दर्दः ॥१३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:16» मन्त्र:13 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (त्वम्) आप (वैदथिनाय) विज्ञानवाले के पुत्र के लिये (ऋजिश्वने) सरलता आदि गुणों से बढ़े हुए पुरुष के लिये (पिप्रुम्) व्यापक (शूशुवांसम्) बल से वृद्ध (मृगयम्) मृग को ढूँढनेवाले का (रन्धीः) नाश करो और (अत्कम्) व्याप्त होनेवाले वायु को (जरिमा) अतिवृद्ध अवस्था के (न) सदृश (पुरः) आगे (पञ्चाशत्) पचास और (सहस्रा) सहस्रों (कृष्णा) कृष्णवर्णवाले सैन्यजनों का (नि, वपः) विस्तार करो और दुष्ट पुरुषों का (वि, दर्दः) नाश करो ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । राजा आदि राजपुरुषों को चाहिये कि सेना में हजारों वीरों को रखके और नम्रता से वृद्धावस्था जैसे रूप और बलों को हरती है, वैसे ही शत्रुओं के बल को धीरे-धीरे नष्ट कर शुद्ध नीति का प्रचार करो ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजंस्त्वं वैदथिनाय ऋजिश्वने पिप्रुं शूशुवांसं मृगयं रन्धीः। अत्कं जरिमा न पुरः पञ्चाशत्सहस्रा कृष्णा निवपो दुष्टान् वि दर्दः ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (पिप्रुम्) व्यापकम् (मृगयम्) मृगमाचक्षाणम् (शूशुवांसम्) बलेन वृद्धम् (ऋजिश्वने) ऋजुगुणैर्वृद्धाय (वैदथिनाय) विज्ञानवतोऽपत्याय (रन्धीः) हिंस्याः (पञ्चाशत्) (कृष्णा) कृष्णानि सैन्यानि (नि) (वपः) सन्तनुहि (सहस्रा) सहस्राणि (अत्कम्) अतति व्याप्नोति तं वायुम् (न) इव (पुरः) (जरिमा) अतिशयेन जरा (वि) (दर्दः) विदारय ॥१३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । राजादिराजपुरुषैः सेनायां सहस्राणि वीरान् रक्षयित्वा विनयेन जरा रूपाणि बलानि हरतीव शत्रूणां बलं शनैः शनैर्हत्वा शुद्धा नीतिः प्रचारणीया ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. राजा व राजपुरुषांनी सेनेमध्ये हजारो वीरांना ठेवावे व वृद्धावस्था जशी रूप व बल नष्ट करते तसे शत्रूचे बल हळूहळू नष्ट करून नम्रतेने शुद्ध नीतीचा प्रचार करावा. ॥ १३ ॥