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बोध॒द्यन्मा॒ हरि॑भ्यां कुमा॒रः सा॑हदे॒व्यः। अच्छा॒ न हू॒त उद॑रम् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bodhad yan mā haribhyāṁ kumāraḥ sāhadevyaḥ | acchā na hūta ud aram ||

पद पाठ

बोध॑त्। यत्। मा॒। हरि॑ऽभ्याम्। कु॒मा॒रः। सा॒ह॒ऽदे॒व्यः। अच्छ॑। न। हू॒तः। उत्। अ॒र॒म् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:15» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अध्यापक विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापक ! (यत्) जो (साहदेव्यः) जो विद्वानों के साथ वर्त्तमान उनमें श्रेष्ठ (कुमारः) ब्रह्मचारी मैं (हूतः) प्रशंसित होता हुआ (अरम्) पूर्ण (न) न जानूँ उस (मा) मुझको (हरिभ्याम्) घोड़ों के सदृश (अच्छ) अच्छे प्रकार (उत्, बोधत्) उत्तम बोध दीजिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - जब कुमार और कुमारियाँ माता और पिता से शिक्षा को प्राप्त हुए आचार्य के कुल को जावें, तब आचार्य के प्रिय आचरण और विनय से उसकी प्रार्थना करके विद्या की याचना करें, जो ऐसा करे, वह श्रेष्ठ घोड़ों से युक्त रथ से जैसे वैसे विद्या के पार को जावे ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अध्यापक ! यत्साहदेव्यः कुमारोऽहं हूतस्सन्नरं न विजानीयां तं मा हरिभ्यामिवाच्छोद्बोधत् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (बोधत्) बोधय (यत्) यः (मा) माम् (हरिभ्याम्) अश्वाभ्यामिव पठनाभ्यासाभ्याम् (कुमारः) ब्रह्मचारी (साहदेव्यः) ये देवैः सह वर्त्तन्ते तत्र भवेषु साधुः (अच्छ) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (न) (हूतः) प्रशंसितः (उत्) (अरम्) अलम् ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदा कुमाराः कुमार्य्यश्च मातापितृभ्यां शिक्षां प्राप्ता आचार्य्यकुलं गच्छेयुस्तदाऽऽचार्य्यस्य प्रियाचरणेन विनयेन तं प्रार्थ्यं विद्या याचनीया य एवं कुर्यात् स उत्तमाभ्यां हरिभ्यां युक्तेन रथेनेव विद्यापारं गच्छेत् ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा कुमार व कुमारिका माता - पिता यांच्याकडून शिक्षण प्राप्त करून आचार्यकुलामध्ये जातात तेव्हा आचार्यांशी प्रिय वर्तन करून विनयाने त्यांची प्रार्थना करून विद्येची याचना करावी. जसे प्रशिक्षित घोडे रथ ओढतात तसे ते विद्या प्राप्त करतील. ॥ ७ ॥