तं यु॒वं दे॑वावश्विना कुमा॒रं सा॑हदे॒व्यम्। दी॒र्घायु॑षं कृणोतन ॥१०॥
taṁ yuvaṁ devāv aśvinā kumāraṁ sāhadevyam | dīrghāyuṣaṁ kṛṇotana ||
तम्। यु॒वम्। दे॒वौ॒। अ॒श्वि॒ना॒। कु॒मा॒रम्। सा॒ह॒ऽदे॒व्यम्। दी॒र्घऽआ॑युषम्। कृ॒णो॒त॒न॒ ॥१०॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे देवावश्विना युवं तं साहदेव्यं कुमारं दीर्घायुषं कृणोतन ॥१०॥