वांछित मन्त्र चुनें

भ॒द्रं ते॑ अग्ने सहसि॒न्ननी॑कमुपा॒क आ रो॑चते॒ सूर्य॑स्य। रुश॑द्दृ॒शे द॑दृशे नक्त॒या चि॒दरू॑क्षितं दृ॒श आ रू॒पे अन्न॑म् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhadraṁ te agne sahasinn anīkam upāka ā rocate sūryasya | ruśad dṛśe dadṛśe naktayā cid arūkṣitaṁ dṛśa ā rūpe annam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भ॒द्रम्। ते॒। अ॒ग्ने॒। स॒ह॒सि॒न्। अनीक॑म्। उ॒पा॒के। आ। रो॒च॒ते॒। सूर्य॑स्य। रुश॑त्। दृ॒शे। द॒दृ॒शे॒। न॒क्त॒ऽया। चि॒त्। अरू॑क्षितम्। दृ॒शे। आ। रू॒पे। अन्न॑म् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:11» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:11» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अग्नि की सदृशता से राजगुणों को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहसिन्) बहुत बल से युक्त (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान ! जिन (ते) आपके (उपाके) समीप में (भद्रम्) कल्याणकारक (रुशत्) उत्तम स्वरूपयुक्त (अनीकम्) सेना (सूर्यस्य) सूर्य के किरणों के सदृश (आ, रोचते) प्रकाशित होती है और (नक्तया) रात्रि के सहित चन्द्रमा के सदृश (ददृशे) दीखती (चित्) और सुख (दृशे) देखने के (अरूक्षितम्) रुखेपन से रहित (अन्नम्) भोजन करने योग्य पदार्थ (दृशे) देखने के योग्य (रूपे) रूप में (आ) प्रकाशित होता है, उन आप का सर्वत्र विजय हो, यह निश्चय है ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा उत्तम प्रकार शिक्षित सेना तथा उत्तम गुणों और ऐश्वर्य के सहित प्रजाओं का पालन करता और दुष्टों को पीड़ा देता है, वह चन्द्र और सूर्य के सदृश सर्वत्र प्रकाशित होता है ॥१॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निसादृश्येन राजगुणानाह ॥

अन्वय:

हे सहसिन्नग्ने ! यस्य त उपाके भद्रं रुशदनीकं सूर्य्यस्य किरणा इवारोचते नक्तया रात्र्या सहितश्चन्द्र इव ददृशे चिदपि सुखं दृशेऽरूक्षितमन्नं दृशे रूप आ रोचते तस्य तव सर्वत्र विजय इति निश्चयः ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भद्रम्) कल्याणकरम् (ते) तव (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (सहसिन्) बहुबलयुक्त (अनीकम्) सैन्यम् (उपाके) समीपे (आ) (रोचते) प्रकाशते (सूर्य्यस्य) (रुशत्) सुरूपम् (दृशे) द्रष्टुम् (ददृशे) दृश्यते (नक्तया) रात्र्या (चित्) अपि (अरूक्षितम्) रूक्षतारहितम् (दृशे) द्रष्टव्ये (आ) (रूपे) (अन्नम्) अत्तव्यम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो राजा सुशिक्षितया सेनया शुभैर्गुणैरैश्वर्य्येण च सहितः प्रजाः पालयति दुष्टान् दण्डयति स चन्द्रवत्सूर्य्य इव सर्वत्र प्रकाशितो भवति ॥१॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नी, राजा, विद्वान पुरुषाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो राजा प्रशिक्षित सेना, उत्तम गुण व ऐश्वर्यासहित प्रजेचे पालन करतो व दुष्टांना त्रास देतो तो चंद्र व सूर्याप्रमाणे सर्वत्र प्रकाशित होतो. ॥ १ ॥