वांछित मन्त्र चुनें

तव॒ स्वादि॒ष्ठाग्ने॒ संदृ॑ष्टिरि॒दा चि॒दह्न॑ इ॒दा चि॑द॒क्तोः। श्रि॒ये रु॒क्मो न रो॑चत उपा॒के ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tava svādiṣṭhāgne saṁdṛṣṭir idā cid ahna idā cid aktoḥ | śriye rukmo na rocata upāke ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तव॑। स्वादि॑ष्ठा। अग्ने॑। सम्ऽदृ॑ष्टिः। इ॒दा। चि॒त्। अह्नः॑। इ॒दा। चि॒त्। अ॒क्तोः। श्रि॒ये। रु॒क्मः। न। रो॒च॒ते॒। उ॒पा॒के॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:10» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:10» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) सूर्य के सदृश प्रकाशमान राजन् ! जो (स्वादिष्ठा) अत्यन्त स्वादुयुक्त मधुर (संदृष्टिः) अच्छी दृष्टि (तव) आपके (उपाके) समीप में (अह्नः) दिन (चित्) और (अक्तोः) रात्रि के मध्य में (रुक्मः) प्रकाशमान सूर्य्य के (न) सदृश (श्रिये) लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये (रोचते) प्रकाशित होती है (इदा) वही आपको रक्षा करने योग्य है (चित्) और जो सम्पूर्ण गुणों से युक्त पुरुष राज्य की रक्षा कर सके और शत्रु को रोक सके (इदा) वही आपको गुरु के सदृश सेवा करने योग्य है ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो दिन रात्रि के प्रबन्ध देखने अन्याय का विरोध करने और न्याय की प्रवृत्ति करनेवाला दूत वा मन्त्री होवे, वही पहिले सत्कार करके रक्षा करने योग्य है ॥५॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने राजन् ! या स्वादिष्ठा संदृष्टिस्तवोपाक अह्नश्चिदक्तो रुक्मो न श्रिये रोचते सेदा भवता रक्षणीया यश्चित्सर्वगुणसम्पन्नो राज्यं रक्षितुं शत्रुं निरोद्धुं शक्नुयात् स इदा भवता गुरुवदासेवनीयः ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तव) (स्वादिष्ठा) अतिशयेन स्वादिता (अग्ने) सूर्य्य इव प्रकाशमान (संदृष्टिः) सम्यग्दृष्टिः प्रेक्षणं (इदा) एव (चित्) (अह्नः) दिवसस्य (इदा) एव (चित्) (अक्तोः) रात्रेर्मध्ये (श्रिये) लक्ष्मीप्राप्तये (रुक्मः) रोचमानः सूर्य्यः (न) इव (रोचते) प्रकाशते (उपाके) समीपे ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! योऽहर्निशं सम्प्रेक्षकोऽन्यायविरोधको न्यायप्रवर्त्तको दूतोऽमात्यो वा भवेत् स एव तावत् सत्कृत्य रक्षणीयः ॥५॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! जो दिवस रात्रीचे व्यवस्थापन ठेवणारा अन्यायाचा विरोध करणारा व न्यायाची प्रवृत्ती ठेवणारा दूत किंवा मंत्री असेल तोच प्रथम सत्कार करण्यायोग्य व रक्षणीय आहे. ॥ ५ ॥