वांछित मन्त्र चुनें

ए॒भिर्नो॑ अ॒र्कैर्भवा॑ नो अ॒र्वाङ् स्व१॒॑र्ण ज्योतिः॑। अग्ने॒ विश्वे॑भिः सु॒मना॒ अनी॑कैः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ebhir no arkair bhavā no arvāṅ svar ṇa jyotiḥ | agne viśvebhiḥ sumanā anīkaiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒भिः। नः॒। अ॒र्कैः। भव॑। नः॒। अ॒र्वाङ्। स्वः॑। न। ज्योतिः॑। अग्ने॑। विश्वे॑भिः। सु॒ऽमनाः॑। अनी॑कैः॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:10» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:10» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रजाविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्विन् ! आप (अर्कैः) सत्कार और (एभिः) बुद्धि, बल और साधुओं के सहित (नः) हम लोगों के लिये रक्षक (भव) हूजिये और (अर्वाङ्) अन्य व्यवहार में वर्त्तमान (स्वः) जैसे सूर्य्य के सदृश सुखकारी (न) वैसे (नः) हम लोगों के ऊपर (ज्योतिः) प्रकाशक हूजिये और (सुमनाः) कल्याणकारक मनयुक्त होते हुए (विश्वेभिः) सम्पूर्ण (अनीकैः) शत्रु और दुष्ट डाकुओं से ग्रहण करने को अशक्य सेनाओं से पालनकर्त्ता हूजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो राजा लोग बल, बुद्धि और सज्जनों से सङ्ग उत्तम रक्षा कर और वृद्धि कराके प्रजा का पालन करते हैं, वे सूर्य्य के सदृश प्रकाशित यशयुक्त सदा आनन्दित होते हैं ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रजाविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वमर्कैरेभिर्नो रक्षको भवाऽर्वाङ् स्वर्ण नो ज्योतिर्भव सुमनाः सन् विश्वेभिरनीकैः पालको भव ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एभिः) प्रज्ञाबलसाधुभिस्सहितः (नः) अस्माकमुपरि (अर्कैः) सत्कर्त्तव्यैः (भव) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्मभ्यम् (अर्वाङ्) इतरस्मिन् व्यवहारे वर्त्तमानः (स्वः) सूर्य इव सुखकारी (न) इव (ज्योतिः) प्रकाशकः (अग्ने) (विश्वेभिः) समग्रैः (सुमनाः) कल्याणमनाः (अनीकैः) शत्रुभिर्दुष्टैर्दस्युभिर्नेतुमशक्यैः सैन्यैः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये राजानो बलबुद्धिसज्जनान् सङ्गत्य संरक्ष्य वर्द्धयित्वा प्रजापालनं विदधति ते सूर्य्य इव प्रकाशितयशसः सदानन्दिता भवन्ति ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे राजे लोक बल-बुद्धी व सज्जनांचा संग करून उत्तम रक्षण करतात ते उन्नती करून प्रजेचे पालन करतात व सूर्याप्रमाणे प्रकाशित व यशस्वी होऊन सदैव आनंदित होतात. ॥ ३ ॥