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स चे॑तय॒न्मनु॑षो य॒ज्ञब॑न्धुः॒ प्र तं म॒ह्या र॑श॒नया॑ नयन्ति। स क्षे॑त्यस्य॒ दुर्या॑सु॒ साध॑न्दे॒वो मर्त॑स्य सधनि॒त्वमा॑प ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa cetayan manuṣo yajñabandhuḥ pra tam mahyā raśanayā nayanti | sa kṣety asya duryāsu sādhan devo martasya sadhanitvam āpa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। चे॒त॒य॒त्। मनु॑षः। य॒ज्ञऽब॑न्धुः। प्र। तम्। म॒ह्या। र॒श॒नया॑। न॒य॒न्ति॒। सः। क्षे॒ति॒। अ॒स्य॒। दुर्या॑सु। साध॑न्। दे॒वः। मर्त॑स्य। स॒ध॒नि॒ऽत्वम्। आ॒प॒॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:1» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:13» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सः) वह (यज्ञबन्धुः) न्याय व्यवहार के भ्राता के सदृश वर्त्तमान राजा (मनुषः) मन्त्री और प्रजाजनों को (चेतयत्) जनावे (तम्) उसको जो सभासद् लोग (मह्या) बड़ी (रशनया) रस्सी से घोड़े के सदृश नीति से (प्र) (नयन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त करते हैं (सः) वह (अस्य) इस राज्य के (दुर्य्यासु) न्याय के स्थानों में राजव्यवहार को (साधन्) साधता हुआ (क्षेति) निवास करता है, वह (देवः) देनेवाला (मर्त्तस्य) मनुष्यसम्बन्धी (सधनित्वम्) धनीपन के साथ वर्त्तमान राज्य को (आप) प्राप्त होता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे यथार्थवादी अध्यापक और उपदेशक लोग उत्तम शिक्षा से विद्यार्थियों के लिये धर्मयुक्त मर्य्यादा को प्राप्त कराते हैं, वैसे ही राजनीति की शिक्षा से राजा के लिये राजधर्म के मार्ग को प्राप्त करो। और जो मन्त्री और प्रजा के सहित राजा व्यसनरहित होकर प्रीति से राजधर्म को करता है, वह ऐश्वर्य्ययुक्त जन और राज्य को प्राप्त होकर सुख से निवास करता है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

यदि स यज्ञबन्धू राजा मनुषश्चेतयत्तं ये सभासदो मह्या रशनयाऽश्वा इव नीत्या प्र नयन्ति सोऽस्य राज्यस्य दुर्यासु न्यायगृहेषु राजव्यवहारं साधन् क्षेति स देवो मर्त्तस्य सधनित्वमाप ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (चेतयत्) ज्ञापयेत् (मनुषः) अमात्यप्रजाजनान् (यज्ञबन्धुः) यज्ञस्य न्यायव्यवहारस्य भ्रातेव वर्त्तमानः (प्र) (तम्) (मह्या) महत्या (रशनया) (नयन्ति) (सः) (क्षेति) निवसति (अस्य) (दुर्य्यासु) (साधन्) (देवः) दाता (मर्त्तस्य) मनुष्यस्य (सधनित्वम्) धनिनां भावेन सह वर्त्तमानं राज्यम् (आप) आप्नोति ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽऽप्ता अध्यापकोपदेशका सुशिक्षया विद्यार्थिनो धर्म्ये मार्गं नयन्ति तथैव राजनीतिशिक्षया राजानं राजधर्मपथं नयन्तु यः सामात्यः सप्रजो राजा निर्व्यसनो भूत्वा प्रीत्या राजधर्मं करोति स ऐश्वर्य्यवज्जनं राज्यं प्राप्य सुखेन निवसति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वान अध्यापक व उपदेशक सुशिक्षणाने विद्यार्थ्यांना धर्मयुक्त मर्यादा शिकवितात, तसेच राजनीतीच्या शिक्षणाने राजासाठी राजधर्माचा मार्ग निर्माण करावा. जो राजा व्यसनरहित होऊन प्रजा व मंत्री यांच्यासह प्रीतीने राजधर्म करतो तो ऐश्वर्ययुक्त जन व राज्य प्राप्त करून सुखाने राहतो. ॥ ९ ॥